फौलादी जज्बों ने गढ़े सोने-चांदी के रथ
India Today Hindi|January 04, 2023
खेलों के दीवाने देश भारत में विश्व विजेता बनने के लम्हे बहुत ज्यादा नहीं आए. ऐसे ही आग में तपकर निखरे शीर्ष दस लम्हे
प्रदीप मैगजीन
फौलादी जज्बों ने गढ़े सोने-चांदी के रथ

हॉकी का स्वर्ण

लंदन ओलंपिक, 1948

आजादी को साल भर ही हुआ था कि भारत को नए युग में स्टिक की अपनी पारंपरिक जादूगरी परखने का मौका मिला... और यह देखने का भी अवसर कि बंटवारे के बाद कहीं उसको जंग तो नहीं लग गई है. उस ताकत के दो टुकड़ों में बंटने के बाद भी दोनों हिस्से अपने-अपने दम पर इतने ताकतवर थे कि फाइनल में भारत और पाकिस्तान के मुकाबले की उम्मीद थी. मगर ग्रेट ब्रिटेन ने सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हरा दिया और फाइनल में भारत का मुकाबला अपने पूर्व औपनिवेशक हुक्मरानों से हुआ. लिहाजा अपना सुपरपावर दर्जा दिखाने का यह मौका दोगुना हसीन था. उम्र के चौथे दशक में चल रहे हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने नवंबर 1947 में पूर्व अफ्रीका में 22 मैचों में 61 गोल दागने के बावजूद गंभीर हॉकी से उसी वक्त छुट्टी ली थी. मगर एक और महान खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर के दिलकश हुनर और रफ्तार की बदौलत भारत ने ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से धूल चटाकर आजादी के बाद अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण जीता.

मिल्खा सिंह 

रोम ओलंपिक 1960

मिल्खा सिंह की विरासत उनके दमखम से रौशन राहों से भी आगे जाती है. 1947 के दंगों में उजड़े-बिछड़े 'फ्लाइंग सिख' ने तमाम मुश्किलों को जीतते हुए भविष्य गढ़ा. मिल्खा ने 1951 में सेना में शामिल होने के बाद दौड़ना शुरू किया और कुछ सालों में दुनिया के 400 मी के शीर्ष धावकों में से एक बन गए. 1960 के रोम ओलंपिक में उनकी कामयाबी भारतीय ट्रैक एथलीट की महानतम कामयाबियों में से एक है. उन्होंने 45.6 सेकंड में दौड़ पूरी की, जो 38 साल तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना रहा. मामूली फर्क से चौथे स्थान पर आकर वे तकनीकी तौर पर तो हारे लेकिन वहां तक पहुंचने की उनकी राह वस्तुतः तपते गोलों से अटी थी.

वनडे क्रिकेट विश्व कप 

1983

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