आवारा
1951 (शंकर-जय किशन)
वह राज कपूर के करियर का शुरुआती दौर था और शंकर-जयकिशन के साथ वे दूसरी ही बार काम कर रहे थे, लेकिन आवारा ने इन महान हस्तियों की आपसी साझेदारी के भविष्य के साउंडट्रैक का खाका तैयार कर दिया. शैलेंद्र के लिखे शीर्षक गीत 'आवारा हूं' ने गहरे दार्शनिक चिंतन वाली उनकी ट्रेडमार्क शैली को स्थापित किया. 'दम भर जो उधर मुंह फेरे', 'घर आया मेरा परदेसी' और 'अब रात गुजरने वाली है' जैसे गीत बार-बार अपनी ओर खींचने वाले संगीत का एल्बम बनाते हैं.
हम दोनों
1961 (जयदेव)
जयदेव हिंदी फिल्म संगीत इतिहास की वह प्रतिभा हैं जिन्हें उतनी ख्याति नहीं मिली जिसके वे हकदार थे. उनका ज्यादा काम सामान्य या कम बजट वाली जुंबिश, गमन, दो बूंद पानी और घरौंदा जैसी समानांतर फिल्मों में खो गया जिनकी कम ही लोग परवाह करते थे. पर जब उन्होंने बड़े सितारों वाली फिल्म का संगीत रचा तो 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया', 'अभी ना जाओ छोड़ कर' और लता मंगेशकर की आवाज में धर्मनिरपेक्षता की प्रतिध्वनि रहे लोकप्रिय 'भजन अल्ला तेरो नाम' जैसे रत्न दिए.
गाइड
1965 (एस.डी. बर्मन)
महान विविधताओं से भरे इस एल्बम में किंवदंती पुरुषों एस. डी. बर्मन और शैलेंद्र ने अस्तित्ववादी तड़प (वहां कौन है तेरा), मूर्तिभंजन (तोड़ के बंधन), संयोग (तेरे मेरे सपने), ठेठ मस्ती (गाता रहे मेरा दिल) और दिल के एक-एक रंग को खोलता आठ मिनट के बेमिसाल मेडले (पिया तोसे..) से दिल को छू लेने वाली गाथाएं बुनी हैं. एस.डी. बर्मन ने किशोर और रफी दोनों से देव आनंद के लिए गवाया है और जादू यह कि दोनों ही आवाजें उनके एकदम माकूल बैठती हैं.
उमराव जान
1981 (खय्याम)
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