बदलाव के बीज
India Today Hindi|January 18, 2023
ऐसे बांटी खुशी : फॉरेस्ट फर्स्ट ने पश्चिमी घाट में न केवल पौधों की देशज प्रजातियों को बहाल करने में मदद की बल्कि स्थानीय समुदायों की जिंदगी को भी संवारा
सोनाली आचार्जी
बदलाव के बीज

केरल के वायनाड में 16 साल टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में काम करने के बाद मीरा चंद्रन 2010 में जिले में स्थित अपनी पारिवारिक जमीन देखने क्या गईं कि उनकी जिंदगी ही बदल गई. उन्होंने पाया कि देशज पौधों को नेस्तोनाबूद कर देने वाली हमलावर प्रजाति लैंटाना खरपतवार पूरी जमीन पर उग आए हैं और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ गया है. तीन साल तक चंद्रन ने अथक काम करके पूरे इलाके को साफ किया - यानी एक-एक खरपतवार को ऐसे उखाड़ा कि वे दोबारा न उग पाएं- और पौधों की देशज प्रजातियों को बहाल किया. तकरीबन उसी वक्त इस उद्यम की बदौलत चंद्रन के मन में यह इच्छा जागी कि ज्यादा बड़े पैमाने पर प्रकृति के संरक्षण के लिए काम करें और फिर फॉरेस्ट फर्स्ट समिति का जन्म हुआ. चार साल टीसीएस और फॉरेस्ट फर्स्ट दोनों का काम एक साथ साधने की बाजीगरी के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरा वक्त संरक्षण के कामों में लगा दिया.

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