पिछले साल के आखिर में भारत के प्रमुख सरकारी अस्पताल को पंगु कर देने वाले साइबर हमले ने हमें दिखा दिया कि 2023 में इस देश को किससे निबटना होगा: डिजिटल अपराध और युद्ध, दोनों रोजमर्रा की जिंदगी, महत्वपूर्ण सुविधाओं और बुनियादी ढांचों में दखल दे रहे हैं, और ये सीमा पर संघर्ष और घुसपैठ से ज्यादा नुक्सान पहुंचा रहे हैं.
एम्स दो हफ्ते से ज्यादा समय तक बाधित रहा, और मैनुअल सिस्टम में वापस आने के साथ ही धीरे-धीरे रेंगने लगा. हमलावरों ने न केवल प्रमुख सर्वरों को हैक कर सूचनाओं की चोरी की बल्कि बैकअप सहित कई टेराबाइट डेटा को भी खराब कर दिया. इसके बाद दूसरे अस्पतालों और हेल्थकेयर सिस्टम्स पर साइबर हमले हुए- सफदरजंग अस्पताल को कथित तौर पर एक दिन के लिए बंद कर दिया गया, और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सिस्टम में 24 घंटे के भीतर 'हांगकांग से' 6,000 से ज्यादा हैकिंग की कोशिश की गई.
इस तरह के हमले अक्सर 'रैनसमवेयर' होते हैं. इसमें बैकअप सहित डेटा में मैलवेयर डाल दिया जाता है और इसे ठीक करने के लिए फिरौती की मांग की जाती है. एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में 78 फीसद भारतीय संगठन मैलवेयर के हमलों के शिकार हुए, और उनमें से हर दसवें संगठन ने अपने डेटा और सिस्टम को फिर से उपयोग के लायक बनाने के लिए दस लाख डॉलर से ज्यादा की फिरौती दी.
एम्स के मामले में कथित तौर पर फिरौती का भुगतान नहीं किया गया लेकिन यह एक बड़ा सबक दे गया कि स्वास्थ्य सेवा के लिए साइबर सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है. यह साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए सूचीबद्ध देश के छह 'महत्वपूर्ण इन्फॉर्मेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर' में अभी तक शामिल नहीं है, भले ही इसकी सख्त जरूरत है. 2023 की फौरी जरूरतों में शामिल हैं: भारत के लिए बहुत विलंबित राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति, शीर्ष सार्वजनिक साइबर सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और कानून लागू करने के लिए गहन साइबर प्रशिक्षण.
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