वहीं, चुनाव से पहले एकदम बिखरा नजर आ रहा विपक्षी गठबंधन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) पांच में से तीन सीटें जीतने में सफल रहा है, और सिर्फ एक सीट भाजपा के खाते में आई जबकि दूसरी कांग्रेस के बागी ने जीती.
ये नतीजे इसलिए भी भाजपा-बीएसएस को असहज करने वाले हैं क्योंकि जून 2022 में तख्तापलट के नाटकीय घटनाक्रम के बाद सत्ता में आई एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार की यह पहली वास्तविक चुनावी परीक्षा थी. नवंबर में हुए अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट के चुनाव सांकेतिक थे, क्योंकि भाजपा ने ५ खुद को दौड़ से बाहर कर लिया था. ( यहां शिवसेना विधायक रमेश लटके की विधवा रुतुजा लटके आसानी से जीत गई थीं.)
लेकिन इस बार का नुक्सान गंभीर है, क्योंकि भाजपा को नागपुर और अमरावती जैसे अपने गढ़ों में ही झटका लगा. औरंगाबाद भी उसकी पकड़ से बाहर रहा. सांत्वना पुरस्कार के रूप में उसे सिर्फ कोंकण से संतोष करना पड़ा, और भाजपा इससे जरूर थोड़ी खुश हो सकती है कि नासिक में कांग्रेस के ही एक विद्रोही ने एमवीए को धूल चटा दी.
नागपुर, आरएसएस के गढ़ के साथ उपमुख्यमंत्री फडणवीस का गृह नगर भी है और यहां हारना सबसे कड़वा अनुभव रहा है. यहां शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा समर्थित उम्मीदवार नागो गाणार कांग्रेस उम्मीदवार और विदर्भ माध्यमिक शिक्षक संघ के सुधाकर अडबाले से हार गए. अमरावती स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में मौजूदा विधायक और फडणवीस के करीबी डॉ. रंजीत पाटिल कांग्रेस के धीरज लिंगाडे से हार गए. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता लिंगाडे ने चुनाव से ऐन पहले यहां से टिकट पाने के लिए कांग्रेस का दामन थाम लिया था.
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परदेस में परचम
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ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
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लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.