जनवरी की 20 तारीख को गुजरात के कृषि मंत्री राघवजी पटेल मोरबी की एक गोशाला पहुंचे. खास जलसे के लिए एक सांड को सजा-धजाकर तैयार किया गया था. छोटी-सी पूजा हुई, मंत्री जी ने गउओं पर फूल न्योछावर किए, आगे की पहल के लिए उसका आशीर्वाद मांगा. उस सांड को तो अंदेशा तक न था कि एक राज्यव्यापी अभियान के तहत वह जल्द ही पहला बधिया बूढ़ा सांड बनने जा रहा था. इसे पटेल ने बाद में 'आवारा मवेशियों के संरक्षण' का अभियान करार दिया.
गुजरात की भाजपा सरकार गोवंश की भारी तादाद से निबटने को लेकर असमंजस और ऊहापोह में फंस गई है. अब उसने साल भर से ज्यादा उम्र के 50,000 सांडों को बधिया करने का फैसला किया है. यह राज्य के शहरी इलाकों में आवारा मवेशियों के खतरे पर लगाम लगाने की कई कोशिशों की ताजातरीन कड़ी है. मवेशियों और खासकर सांडों को तिलांजलि देकर सार्वजनिक जगहों पर खुला छोड़ दिया गया है, जहां वे राहगीरों पर हमले करके या सड़क दुर्घटनाओं का सबब बनकर इनसानों के लिए खतरा बन गए हैं. पिछले साल अगस्त में इसकी वजह से उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल के पैर में फ्रैक्चर तक हो गया था, जब मेहसाणा जिले में उनकी अगुआई में निकल रही भाजपा की रैली पर एक आवारा गाय ने धावा बोल दिया. कई बार ऐसे हादसे जानलेवा हो गए. बधियाकरण अभियान शुरू होने के महज चार दिन बाद 24 जनवरी को भावनगर में एक शख्स आवारा सांड को अपनी कार से टक्कर मारने के बाद जान से हाथ धो बैठा. गुजरात हाइ कोर्ट को इस मामले का पहली बार संज्ञान लिए एक साल से ज्यादा हो गया है. तभी से वह सरकार को 'कार्रवाई' करने के लिए कहता आ रहा है. पिछले दिसंबर में तो उसने यह तक कह दिया कि "आवारा मवेशियों का खतरा हाथ से बाहर चला गया है."
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