किशनगंज शहर से 18-20 किमी की दूरी पर महानंदा नदी का खरखरी घाट है. अप्रैल महीने के इन दिनों नदी में पानी काफी कम हो गया है फिर भी दोनों तरफ से नावें चल रही हैं. छोटे आकार की दोनों नावों पर एक दर्जन लोग, कुछ साइकिलें और एक-दो मोटरसाइकिल सवार हैं. तभी दूर से दो लोग अपनी साइकिल कंधे पर लिए पैदल आते नजर आते हैं. घुटने भर पानी वाली इस नदी को वे पैदल ही पार कर रहे हैं. उनमें से एक खाड़दह गांव के गोदू लाल यादव हैं. वे बताते हैं, "नाव वाला साइकिल पार कराने के 10 रुपए ले लेता है, इसलिए हम कंधे पर साइकिल उठाकर पैदल ही आ गए."
पिछले महीने, 19 मार्च को इसी तरह ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ इसी घाट से महानंदा नदी को पैदल ही पार कर गए थे. वे सीमांचल में अपनी दो दिवसीय पदयात्रा के लिए आए थे. सीमांचल में एआइएमआइएम की अच्छी पकड़ रही है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने इस इलाके से पांच सीटें जीती थीं. हालांकि बाद में इनमें से चार विधायक राजद में शामिल हो गए. 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वे फिर से अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं.
सीमांचल में इस वक्त एआइएमआइएम की पकड़ भले ढीली हो रही हो, मगर खरखरी घाट में ओवैसी का पैदल महानंदा नदी को पार करना स्थानीय लोगों को अच्छा लगा. इस इलाके के लोग लंबे समय से यहां महानंदा पर एक पुल की मांग कर रहे हैं. पूरे इलाके में ऐसे और दूसरे आंदोलन भी चल रहे हैं. (देखें बॉक्स : सीमांचल में कहां हो रही है पुल की मांग) ओवैसी खरखरी घाट के अलावा पूर्णिया जिले के खाड़ी घाट और रसैली घाट में भी नदी में उतर गए. इन नदी घाटों की यात्रा के बाद औवेसी ने कहा, "पटना में पांच-पांच किमी की दूरी पर पुल बन रहे हैं, राजगीर में ग्लास ब्रिज बन गया, मगर सीमांचल के लोगों के लिए आज भी लाश को कश्ती पर ले जाने की मजबूरी है. एक पुल न होने के कारण लोगों को 15 किमी की दूरी तय करने के लिए 70 किमी सफर करना पड़ रहा है. यहां या तो पुल बन नहीं रहे, जहां बन भी रहे हैं वहां प्रोजेक्ट नौ-दस साल से अटके हैं."
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