धरने के 11वें दिन 3 मई को सुबह नौ बजे के बाद दिल्ली के जंतर-मंतर के फुटपाथ पर नीली-पीली पॉलीथीन के टेंट में ओलंपियन पहलवान साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया तैयार होकर आ चुके थे और उनको समर्थन देने वाले भी एक-एक कर आ रहे थे. टेंट में एक क्रेट केले और दूध से भरी टंकी रखी थी. इसी बीच लखनऊ से आए एक शख्स ने आंदोलन के लिए भावुक होते हुए 1,100 रुपए दिए, वह यहीं नहीं रुका. रेसलर विनेश फोगाट को उसने अपनी कीमती घड़ी दी और रुंधे गले से कहा, "मैं सोच रहा था कि आप लोगों के लिए ओडोमॉस लेता चलूं..." विनेश ने कहा, "लोगों के लाए बहुत सारे ओडोमॉस हैं."
करीब 10 बजे संचालक ने माइक संभालते हुए सबसे पहले दूध की टंकी और सामान भेजने वालों का शुक्रिया अदा किया और कहा, "हम भगत सिंह के हॉर्मोन वाले लोग हैं, पीछे नहीं हटेंगे... भारत माता की जय." तब तक करीब सौ समर्थक वहां पहुंच चुके थे. लेकिन इससे भी ज्यादा पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बल पहलवानों के धरनास्थल की घेराबंदी के साथ सुरक्षा में तैनात हैं जो हर आने-जाने में वाले की तलाशी ले रहे हैं. और ऐसी ही कड़ी सुरक्षा जंतर मंतर से करीब 350 मीटर दूर स्थित भाजपा सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के आवास 21 अशोक रोड की भी है जिनके खिलाफ कार्रवाई के लिए यह धरना हो रहा है.
बृजभूषण शरण सिंह का नाम पूर्वी यूपी के प्रभावी नेताओं में है. जंतर मंतर से करीब 680 किमी दूर गोंडा के नवाबगंज में किले जैसी सफेद दीवारों वाले 55 एकड़ के विशाल परिसर में 1993 में बना नंदिनीनगर महाविद्यालय पहलवानी के शौकीन लोगों का केंद्र है. 30 अप्रैल को महाविद्यालय परिसर में बना कुश्ती का इंडोर स्टेडियम पहलवानों के दांवपेच का नहीं बल्कि कैसरगंज से सांसद सिंह की ताकत का गवाह बना. मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' के 100वें एपिसोड को सुनने के लिए बड़ी स्क्रीन लगाई गई थी. करीब पांच हजार लोगों के बीच सिंह ने अयोध्या से आए संतों के साथ बैठकर 'मन की बात' सुनी. बीच-बीच में लोग माला और अंगवस्त्र पहनाकर अपने नेता का सम्मान भी करते रहे. इस तरह भीड़ जुटाकर उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि भले ही उन पर पहलवानों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हों लेकिन क्षेत्र की जनता का समर्थन उन्हें अभी भी बरकरार है.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"