शरद पवार ऐसे सियासी सुजान हैं जो मुश्किल में भी सकुशल बाहर निकल आते हैं. 5 मई को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे को वापस लेने के उनके कदम को कई लोग पार्टी में अस्थायी शांति के तौर पर देख सकते हैं. लेकिन इससे पवार ने दिखा दिया है कि असली ताकत किसके पास है. पवार ने अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्ति की आकस्मिक घोषणा 2 मई को की. उससे पहले ऐसी खबरें आई थीं कि उनके भतीजे और महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार के नेतृत्व में पार्टी का एक गुट भाजपा से बातचीत कर रहा है.
शरद पवार के इस्तीफे के ऐलान के बाद नेता और कार्यकर्ता तीन दिन तक प्रदर्शन करते हुए उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग कर रहे थे. शरद के इस शक्ति प्रदर्शन के बावजूद संकट कम नहीं हुए हैं. अजीत ने भाजपा से बातचीत से इनकार किया है, पर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे का कहना है कि अजीत भाजपा की "सीमारेखा" पर हैं. राणे ने दावा किया कि शरद पवार से इस्तीफा वापस लेने की गुहार लगा रहे कई नेता भाजपा में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे.
सूत्रों का कहना है कि अजीत और उनका खेमा, जिसमें प्रवर्तन एजेंसियों के निशाने पर बैठे एक राष्ट्रीय नेता भी शामिल हैं, यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) से अलग होकर भाजपा के साथ गठबंधन कर ले.
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