कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान 16 अप्रैल को कोलार की जनसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जाति आधारित जनगणना की मांग उठाते हुए एक नारा दिया था- जितनी आबादी, उतना हक. इसके साथ उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करने वाली सरकार सभी जातियों का सही विकास सुनिश्चित करने के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के खिलाफ है. राहुल गांधी का यह नारा कांशीराम के नारे 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' की याद दिलाता है.
भारत में जनगणना के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है किस जाति के कितने लोग हैं. अभी जो जनगणना होती है, उससे यह तो पता चलता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कितने लोग हैं. लेकिन यह पता नहीं चलता कि अन्य पिछड़ा वर्ग के कितने लोग हैं और विभिन्न वर्गों के अंदर किस जाति की कितनी आबादी है. विपक्षी पार्टियां लंबे समय से 2021 की जनगणना को जाति के आधार पर कराने की मांग कर रही हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने 2021 की जनगणना के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनसे साफ है कि इस मांग को नहीं माना गया.
जाति आधारित जनगणना के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती भी अलग से करने की मांग की जा रही है. लेकिन केंद्र ने इस मांग को भी खारिज कर दिया. हालांकि 2018 में मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती कराने की बात कही थी. वहीं 2021 में केंद्र सरकार ने जनगणना कराने के लिए जिला स्तर तक के अधिकारियों को एक हैंडबुक भेजी गई थी. इसमें केंद्र सरकार ने अंदेशा जताया था ने कि अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना कराने के लिए विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र सरकार 2021 की जनगणना को कोरोना का हवाला देकर टालती रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि 30 सितंबर, 2023 के बाद जनगणना के लिए घरों को सूचीबद्ध करने का काम शुरू होगा.
This story is from the May 31, 2023 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the May 31, 2023 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.