जाति जनगणना आखिर हो क्यों नहीं जाती?
India Today Hindi|May 31, 2023
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जाति जनगणना से पीछे हटने के लिए पिछली सरकारों की दलीलों का सहारा ले रही है, हालांकि इसके राजनैतिक नफा-नुक्सान भी उसे उठाने पड़ सकते हैं पड़
हिमांशु शेखर
जाति जनगणना आखिर हो क्यों नहीं जाती?

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान 16 अप्रैल को कोलार की जनसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जाति आधारित जनगणना की मांग उठाते हुए एक नारा दिया था- जितनी आबादी, उतना हक. इसके साथ उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करने वाली सरकार सभी जातियों का सही विकास सुनिश्चित करने के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के खिलाफ है. राहुल गांधी का यह नारा कांशीराम के नारे 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' की याद दिलाता है.

भारत में जनगणना के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है किस जाति के कितने लोग हैं. अभी जो जनगणना होती है, उससे यह तो पता चलता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कितने लोग हैं. लेकिन यह पता नहीं चलता कि अन्य पिछड़ा वर्ग के कितने लोग हैं और विभिन्न वर्गों के अंदर किस जाति की कितनी आबादी है. विपक्षी पार्टियां लंबे समय से 2021 की जनगणना को जाति के आधार पर कराने की मांग कर रही हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने 2021 की जनगणना के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनसे साफ है कि इस मांग को नहीं माना गया.

जाति आधारित जनगणना के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती भी अलग से करने की मांग की जा रही है. लेकिन केंद्र ने इस मांग को भी खारिज कर दिया. हालांकि 2018 में मोदी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती कराने की बात कही थी. वहीं 2021 में केंद्र सरकार ने जनगणना कराने के लिए जिला स्तर तक के अधिकारियों को एक हैंडबुक भेजी गई थी. इसमें केंद्र सरकार ने अंदेशा जताया था ने कि अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना कराने के लिए विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र सरकार 2021 की जनगणना को कोरोना का हवाला देकर टालती रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि 30 सितंबर, 2023 के बाद जनगणना के लिए घरों को सूचीबद्ध करने का काम शुरू होगा.

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