असल में, क्या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के तौर पर बी. एल. संतोष के दिन पूरे हो गए हैं? 13 मई, 2023 को जब कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम आए और भाजपा को करारी हार मिली तो पार्टी के अंदर भी यह सवाल उठने लगा. भाजपा की राष्ट्रीय टीम में से जिन नेताओं ने कर्नाटक चुनावों को करीब से देखा, उन्हें पता है कि इस चुनाव में संतोष की क्या भूमिका रही. पार्टी की चुनावी रणनीति तैयार करने से लेकर टिकट बंटवारे और प्रचार अभियान तय करने में संतोष की प्रमुख भूमिका थी.
अन्य विधानसभा चुनावों के मुकाबले कर्नाटक के चुनावों में संतोष की प्रमुख भूमिका रहने की दो वजहें हैं. पहला तो यह कि कर्नाटक उनका गृह राज्य है. दूसरी वजह यह है कि 2006 से 2014 तक संतोष कर्नाटक के संगठन महामंत्री रहे हैं. 2014 में उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन्हें संयुक्त संगठन महामंत्री के तौर पर राष्ट्रीय टीम में लेकर आए. तब भी उन्हें दक्षिण भारतीय राज्यों की जिम्मेदारी दी गई. दक्षिण भारत में उन्होंने लंबा वक्त गुजारा है. इस से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि संतोष दक्षिण भारत को ठीक से समझते हैं. इसलिए कर्नाटक के मामले में संतोष की अपेक्षाकृत अधिक सुनी गई.
कर्नाटक में टिकट बंटवारे में मनमानी चलाने का आरोप संतोष पर लगातार लगा. टिकट कटने से असंतुष्ट कुछ भाजपा नेताओं ने तो सार्वजनिक तौर पर संतोष पर आरोप लगाए. उन पर कुछ वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से बाहर जाने के लिए मजबूर करने का आरोप भी लगा. पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदीश शेट्टार ने सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाया कि संतोष ने अपने करीबी महेश तेंगनकाई को उनकी सीट हुबली धारवाड़ से टिकट दिलाने के लिए षड्यंत्र करके उनका टिकट कटवाया.
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