फौज तो पेट के बल भी मार्च कर लेती है लेकिन उसका रसद और साजो-सामान तो सड़कों के रास्ते ही पहुंचता है. जनवरी 2023 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिकों की झड़प के एक महीने बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पूर्वोत्तर राज्य का दौरा किया. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के कूट अक्षरों को थोड़ा घुमाकर 'ब्रदर' जैसा अर्थ निकाल कर उन्होंने कहा कि बीआरओ के जवान 'हमारे सशस्त्र बलों के भाई' हैं. दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार ने सीमावर्ती सड़कों के निर्माण को सर्वाधिक महत्व दिया है. पिछले पांच वर्षों में बीआरओ ने 20,767 करोड़ रु. की कुल लागत से ज्यादातर एलएसी के साथ 3,600 किलोमीटर से ज्यादा सड़कों का निर्माण किया, ताकि अग्रिम मोर्चे के इलाकों में हर मौसम में यातायात आसान हो जाए. इससे भारतीय सेना को चीन सीमा पर अपनी युद्ध की तैयारी और साजो-सामान पहुंचाने की प्रक्रिया आसान बनाने में बड़ी मदद मिली है.
केंद्रीय बजट 2023-24 में बीआरओ का पूंजी परिव्यय 5,000 करोड़ रु. है जबकि 2022-23 में यह 3,500 करोड़ रु. था. यानी 43 फीसद की वृद्धि हुई. इससे भी जाहिर है कि सरकार का उस पर किस कदर फोकस बना हुआ है.
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