● क्या यह सच है कि आपने घर के दरवाजों के हत्थों की जगह ट्रॉफियां लगवा रखी हैं?
सच है. क्योंकि इन ट्रॉफियों की कोई कीमत नहीं है मेरे लिए पहली वाली मिली तो बहुत खुश हुआ था. उसके बाद अवॉर्ड पर अवॉर्ड मिलते गए. फिर पता चला कि ये मेरिट की वजह से नहीं मिल रहे बल्कि लॉबीइंग का नतीजा हैं. तो मैंने उन अवॉर्ड्स को कहीं रख दिया. फिर मुझे पद्मश्री, पद्मभूषण वगैरह दिया गया तो अपने वालिद की याद आई जो गुजर चुके थे. हमेशा फिक्र में रहते थे कि तुम ये निकम्मों का काम करते हो, भांड बनोगे. मैं राष्ट्रपति भवन में था तो बाबा (ऊपर की ओर देखते हुए) से कहा, देख रहे हो? वे देख रहे थे और बड़े खुश हो रहे थे. कॉम्पिटेटिव अवॉर्ड्स से मुझे सख्त नफरत है. पिछले दो अवॉर्ड तो मैं लेने भी नहीं गया. फार्म हाउस बनाया तो सोचा कि इनको यहां लगा देते हैं. जो भी बाथरूम जाएगा, दोनों हाथ से दरवाजा खोलने पर उसे दो-दो फिल्मफेयर मिलेंगे.
● हम सबकी किस्मत में ऐसा ही है क्या कि जब गले लगाना था तब हमारे पिता सख्त बने रहे, और जब उन्होंने समझना चाहा तब हम दूर जा चुके थे.
मेरे साथ ये दुतरफा था. न मैं अपने वालिद को समझ पाया, न वो कभी मुझे समझ सके. वे पुराने खयालों के थे: पिता घर का मुखिया होता है. जो वो कहे, वही सच. एक फासला बना रहा हमारे बीच ताउम्र. मैं उनकी कब्र पर गया तो उनसे खूब बातें कीं. वह सब कुछ उन्हें बताया जो मैं कहना चाहता था और कह नहीं पाया था. ऐसा लगा कि वे सुन रहे थे. लेकिन आपने जो कहा वो सही है कि जब गले लगाना था तब सख्त हो जाते हैं. अब एक लड़का अगर क्लास में फेल हुआ है तो वह खुश तो नहीं होगा. घर आएगा तो हालत पतली होगी. उसी वक्त कंफर्ट की जरूरत होती है. ये नहीं कि आप चिल्लाएं उस पर और धमकियां दें. मैं इस बात का खयाल जरूर रखता हूं अपने बच्चों के साथ.
● अमन (1967) फिल्म की क्या यादें हैं जब आप पहली दफा स्क्रीन पर आए थे?
This story is from the June 14, 2023 edition of India Today Hindi.
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