भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के मस्जिद परिसर में वैज्ञानिक जांच पर इलाहाबाद हाइ कोर्ट को पहली अगस्त को फैसला सुनाना था. उससे एक दिन पहले 11 ही बीती 31 जुलाई को एक समाचार संगठन से बात करते हुए योगी ने कहा कि “अगर हम उसको मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा." मस्जिद के अंदर त्रिशूल क्या कर रहा है? इसे हमने तो वहां रखा नहीं. वहां ज्योतिर्लिंग है और देव प्रतिमाएं हैं.... मुसलमानों की ओर से स्वीकारोक्ति होनी चाहिए कि एक ऐतिहासिक गलती हुई है और हम चाहते हैं कि इसका समाधान हो."
तीन अगस्त को इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने इस तर्क के साथ एएसआइ को इसकी इजाजत दे दी न्याय के हित में वैज्ञानिक सर्वेक्षण जरूरी है." उसने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (एआइएमसी) की अर्जी खारिज कर दी. यही कमेटी 17वीं शताब्दी के इस मस्जिद परिसर की देखभाल करती है. उसने इस तरह के सर्वे के वाराणसी की एक अदालत के आदेश पर रोक लगाने की अपील की थी. निचली अदालत का उक्त आदेश मस्जिद परिसर के अंदर हिंदू मूर्तियों की मौजूदगी और उनकी पूजा करने के उनके अधिकार का दावा करने वाली पांच महिला भक्तों की ओर से अगस्त 2021 में दायर की गई याचिका पर आया था. पिछले साल जटिल कानूनी दांव-पेंच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने परिसर के वीडियो सर्वेक्षण पर रोक लगाते हुए मामले को वापस निचली अदालत में भेज दिया था (देखें-काशी की गुत्थी).
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