नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 2020 से 2022 के वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को कोविड- 19 की महामारी की चुनौती का सामना करना पड़ा, पर 2023 में धीमे-धीमे नई जान आती देखी गई, जो टिकाऊ होने की उम्मीदों से भरी है. यहां तक कि जब विकसित दुनिया में भी सुस्ती के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, वित्त वर्ष 23 में 7.2 फीसद की वृद्धि दर से बढ़ता देश वैश्विक क्षितिज पर इने-गिने रौशन स्थलों में एक साबित हुआ. मौजूदा वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था करीब 6 फीसद की दर से बढ़ने को तैयार है, कई लोगों की नजर में यह बहाली टिकाऊ मालूम देती है. यही नहीं, जापान और जर्मनी के लगातार पिछड़ते जाने के साथ भारत, अमेरिका और चीन के बाद, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में तीसरे पायदान पर भी आ सकता है. अलबत्ता निकट अवधि में महंगाई और रोजगा सृजन में कमी सहित कई चुनौतियां इस टिकाऊ वृद्धि को उलटने का खतरा पैदा कर रही हैं. दरअसल, ताजा देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण ने भी जमीन पर मौजूद कुछ फिक्र और चिंताओं को पकड़ा है. जब पूछा गया कि भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने अर्थव्यवस्था को कैसे संभाला, तो सिर्फ 46.6 फीसद लोगों ने असाधारण या अच्छा बताया, जो जनवरी 2016 के बाद हुए सारे देश का मिज़ाज सर्वे में अब तक का सबसे कम प्रतिशत है. इस साल जनवरी के सर्वे के मुकाबले भी यह बदतर है, जब 53.9 फीसद लोगों ने मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था की साज-संभाल को असाधारण या अच्छा आंका था. यह जनवरी, 2021 के नतीजे से भी बहुत कम है, जब कोविड महामारी के ऐन बीचोबीच 66 फीसद जितने लोगों ने सरकार की पीठ थपथपाई थी. उस वक्त यह गरीब तबकों और साथ ही लघु, छोटे और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को राहत पहुंचाने के लिए सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की स्वीकारोक्ति भी थी, पर अब उनका असर फीका पड़ गया है. इसलिए सरकार को ऐसे कुछ और कदम उठाते दिखने की जरूरत है जिनसे जमीन पर लोग फिर अच्छा महसूस करें, चाहे वह नौकरियों का सृजन करने या बेलगाम बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने की शक्ल में हो.
गिरती आर्थिक स्थिति
This story is from the September 06, 2023 edition of India Today Hindi.
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