जिन नियोजित शिक्षकों ने भाग लिया भी, वे वर्तमान पद से उच्च पद के लिए दावेदारी कर रहे थे. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि बिहार सरकार उनके लिए अलग से परीक्षा का आयोजन कराएगी या कोई और रास्ता निकालेगी. यह भरोसा उन्हें महागठबंधन में शामिल दल भाकपा-माले की वजह से हासिल हुआ है.
टीईटी-एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता अश्विनी पांडेय कहते हैं, "पहले सरकार हमसे भी इस परीक्षा में भाग लेने के लिए कह रही थी. सरकार का कहना था कि अगर नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा चाहिए तो उन्हें इस परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा. मगर भाकपा-माले ने जिस तरह से हमारे मुद्दे को उठाया और महागठबंधन में शामिल दूसरे दलों को समझाया, उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी हमारी मांगों से सहमत होना पड़ा."
बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल भाकपा-माले की यह बड़ी जीत है और इस तरह पार्टी ने अपने आपको राज्य में एक ऐसे दल के रूप में स्थापित कर लिया है, जो सत्ता में रहते हुए जनता के जायज मुद्दों पर सड़क पर उतर कर संघर्ष करती है और अपनी मांगें मनवा लेती है. उन्हें इसके लिए राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा पर भरोसा नहीं है.
यही वजह थी कि 13 जुलाई, 2023 को जब भाजपा ने इन शिक्षकों के मुद्दे पर विधानसभा घेराव का आयोजन किया तो उनके साथ राज्य का कोई शिक्षक संघ नहीं पहुंचा. वहीं दो दिन पहले भाकपा-माले समर्थित विधानसभा घेराव में राज्य के लगभग सभी शिक्षक संघ के लोग शामिल थे. राज्य के 14 शिक्षक संघ ने भाकपा-माले को अपना समर्थन दिया था और भाकपा-माले विधायक संदीप सौरभ ने इस आंदोलन की अगुआई की. बाद में 5 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाकपा-माले के सौरभ और गठबंधन के दूसरे साथियों से बात कर उन्हें भरोसा दिलाया कि वे जरूर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे.
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