मंजर वाकई बहुत गजब का है-पहाड़ियां, कांटे, बालू, हरियाली और इन सबकी खूबसूरती में चार चांद लगाता हुआ मॉनसून का सूर्यास्त–लेकिन इन सबको खास बनाती है यहां की चट्टान. रेगिस्तानी झाड़ियां ग्रेनाइट के बड़े-बड़े टुकड़ों से अटी पड़ी हैं. ये विशाल टुकड़े ज्वालामुखी से निकले हैं और हवा ने इन्हें तराशकर इसका आकार गढ़ा है. सीप की मानिंद, नाग के फन की तरह हवा में लटके, दांतेदार चट्टानों के बीच में दरार और गुफाएं हैं. इस तरह का माहौल किसी तेंदुए के छिपने और आराम करने के लिए बिल्कुल माकूल है.
मेरे होटल के गेट पर ऐसी ही एक 15 लाख साल पुरानी 12 टन की चट्टान खड़ी है; उस चट्टान पर 'चीतागढ़ रिजॉर्ट ऐंड स्पा, बेरा-ए वेलकम हेरिटेज रिजॉर्ट' उकेरने में एक महीना लग गया. बेरा जवाई नदी पर बने बांध के इर्द-गिर्द बसे कई गांवों में से एक है. जवाई का इलाका तेंदुओं का पर्याय बन गया है-बेरा के ही इलाके में करीब 50-60 तेंदुए हैं. उनमें से किसी के दिखने की 95-100 फीसद संभावना है. इस सबसे शर्मीले बड़े बिल्ले के दिखने की इतनी संभावना है? यकीन नहीं होता. जंगल सफारी में धैर्य और किस्मत बहुत काम आते हैं.
चीतागढ़ में मेरा लेक व्यू कमरा 20 खूबसूरत और अच्छी तरह से सुसज्जित कमरों में से एक है. मैं सुबह 4.30 अपनी बाल्कनी में बस यूं ही निकल जाती हूं. आकाश में शुक्र ग्रह की तरह झील पर लैंप जल रहे हैं जिससे उसके पानी में कुछ झिलमिल हो रही है. इसे छोड़कर बाकी दुनिया गहरे मखमली अंधेरे में लिपटी दिखती है. रोटेला झील के बगुले और किंगफिशर सो रहे हैं, दोनों मगरमच्छ खामोश पड़े हैं. गनीमत है कि मुझे पैदल नहीं चलना है-वैसे, यहां सैकड़ों वर्षों से किसी तेंदुए ने इंसान पर हमला नहीं किया है, फिर भी मुझे अपवाद नहीं बनना है. इसके अलावा, यह जगह करैत, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर और नागों से भरी हुई है. होटल की तरफ से सैलानियों को हिदायत दी जाती है कि दिन के उजाले में उनकी बग्गी का इस्तेमाल करें.
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ठोकने की यह कैसी नीति
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"