कहावत है कि आप वही होते हैं जो खाते हैं. जब पकवानों की बात आती है तो वे इतने सारे और तरह-तरह के हैं कि भारतीयों के लिए चुनना मुश्किल हो जाता है. पाक कला की इस भरपूर दौलत के नतीजे जल्द शरीर पर दिखने लगते हैं. जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियां देश में चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई हैं. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के हालिया अध्ययन से वह सच्चाई उजागर हुई जो हम कुछ वक्त से जानते हैं - भारत अब दुनिया की डायबिटीज या मधुमेह राजधानी है. देश में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं. दुनिया के डायबिटीज से ग्रस्त 17 फीसद मरीज भारत में हैं. दुश्मन बेगाना नहीं है. वह हमारे ज्यादातर खाने में मौजूद चीनी या शक्कर है.
बुरी खबरें और भी हैं. यह विडंबना जायकेदार तो नहीं ही है कि एक-तिहाई भारतीय शिशु कुपोषण से ग्रस्त हैं, और फिर भी मोटापा महामारी की हदें छू रहा है. 2021 के पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) से पता चला कि 60 फीसद महिलाओं और 50 फीसद पुरुषों में कमर-नितंब अनुपात (डब्ल्यूएचआर) काफी हद तक जोखिम वाला है, जो पेट के मोटापे का संकेत है. इसका स्वाभाविक नतीजा है उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियां दिक्कत यह है कि युवा और अधेड़ उम्र के लोग इनकी चपेट में आ रहे हैं. जैसा कि द लैंसेट से खतरनाक चेतावनी आई है कि भारत में एक-चौथाई से ज्यादा मौतें अब दिल की बीमारियों से हो रही हैं. यह दर बीते दो दशकों में तेजी से बढ़ी है. नई दिल्ली के एम्स में डाइटेटिक्स या आहार विद्या की पूर्व प्रमुख और मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. अलका मोहन कहती हैं, “खासकर युवाओं में डायबिटीज और दिल की परेशानियों सरीखी गैर-संक्रामक बीमारियों का बढ़ना साफ संकेत है कि भारतीयों का खानपान सही नहीं है."
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