प्रथम नागरिक
द्रौपदी मुर्मू, 65 वर्ष भारत की राष्ट्रपति
भारत में आदिवासी समुदाय राज्य की सामाजिक व्यवस्थामें सबसे निचले पायदान पर रखे गए हैं. वही पितृसत्तात्मक नजरिए वाली कल्याणकारी व्यवस्था जो नई दिल्ली से रिसते-खिसकते आगे बढ़ती है और दूरदराज तक पहुंचती है. मुल्क के आर्थिक पिरामिड को जो आकार देती है. लेकिन उसी समाज से आकर वे देश की पहली राष्ट्रपति के तौर पर पिछले साल भर से केंद्र में सबसे ऊंचे पायदान पर हैं. राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाने वाली 15वीं प्रथम नागरिक के तौर पर द्रौपदी मुर्मू समावेशिता का शानदार प्रतीक बनकर उभरी हैं. वे इस बात का जीवंत मिसाल भी पेश करती हैं कि एक वंचित समुदाय जिसकी विशाल मानव क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो सका है - के लिए क्या-क्या संभव है, वह क्या कुछ हासिल कर सकता है.
मुर्मू आदिवासियों के जीवन को परिभाषित करने वाली कठोर वास्तविकताओं के लिहाज से कोई अपवाद नहीं हैं. वे खुद संघर्ष की भूमि पर पनपी हैं. ओडिशा के मयूरभंज जिले में एक संताली किसान के घर में जन्मीं मुर्मू आज भारत के 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों के लिए एक प्रकाशस्तंभ की तरह खड़ी हैं. ओडिशा भारत के सर्वाधिक 63 आदिवासी समुदायों का घर है, जबकि मयूरभंज जिले की आबादी में जनजातीय समूहों की हिस्सेदारी लगभग 60 फीसद है.
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