![बदबदाती फल्गू और बुद्ध का सूना आंगन. नारों में सब लगे किनारे](https://cdn.magzter.com/India Today Hindi/1713178125/articles/QOPjsw7zu1713268790329/1713268908614.jpg)
पीछे से उनके पंडित चिल्लाए " जजमान गौमाता को ही खिला दीजिएगा, फल्गू में मत डालिएगा." मगर हजारों मील का सफर कर गयाजी पहुंचे ये श्रद्धालु भला ऐसे कैसे मान लेते ! पंडित का मन रखने को उन्होंने थोड़ा-सा गौमाता को खिलाया, बाकी उस फल्गू नदी को समर्पित कर दिया जो बिल्कुल गंदली नजर आ रही थी. जजमान ने फल्गू में जहां पांव डाला था, वहां मटमैले पानी के आसपास कचरा फैला था. थोड़ी ही दूर काई पसरी थी. पर गंदगी, बदबू और काई ने उन जजमानों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आने दी, जो अपने पितरों के मोक्ष की कामना लिए यहां आए थे.
पंडित जयप्रकाश पांडे परेशान थे. वे कहने लगे, "फल्गू में पड़ने वाला हर पिंड नदी की गंदगी और को बढ़ाएगा. बदबू को इसलिए हमलोग चाहते हैं कि पिंड गौमाता को ही अर्पित कर दिया जाए. पर ये जजमान लोग सुनते ही नहीं. " पहले फल्गू में पानी भले न हो पर नदी का पाट साफ-सुथरा रहता था. नदी ऐसी कैसे हो गई? इस सवाल पर वे विरक्त भाव से 2022 में बने रबड़ डैम की तरफ इशारा करते हैं. बिहार सरकार ने डैम इस मकसद से बनवाया था कि बिना पानी की नदी कही जाने वाली फल्गू नदी में हमेशा गंगाजल रहे. करीब 150 किमी दूर से गंगा नदी से पानी यहां लाने का इंतजाम किया गया. "गंगाजल तो आया नहीं मगर फल्गू जरूर गंदे नाले में बदल गई है. रबड़ डैम की वजह से बरसात का गंदला पानी अटक गया है और इसमें डाला जाने वाला पिंड सड़ कर बदबू देता रहता है. पहले पानी नहीं था मगर बारिश का पानी आने पर पिंड बह जाता था. नदी साफ-सुथरी थी. जरा-सा बालू हटाते ही पानी निकल आता. हम जजमानों को नदी में बिठाकर पिंडदान कराते थे. अब तो नदी में पांव देने में भी हिचक होती है. " पांडे बयान करते जाते हैं.
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सूरत बदलने का इंतजार
यह ऐसी योजना थी जैसे ताजा कटा हुआ चमकता नग हो. पांच साल पहले सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) को मुंबई बढ़ती भीड़ और लागत वृद्धि का एकदम सटीक विकल्प माना गया था. मुंबई, जहां भारत के अधिकांश हीरा व्यापारी हैं, की टक्कर में हीरा कारोबारियों के लिए शानदार, सस्ते और बड़े ऑफिस, चौड़ी सड़कें, उन्नत हवाई अड्डे के साथ योजनाबद्ध अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाई संपर्क की योजना बनाई गई थी. इसमें सोने में सुहागा प्रस्तावित बुलेट ट्रेन थी जो महज दो घंटे में सूरत से मुंबई बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स तक पहुंचा देती.