कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू में भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के शांत और हरे-भरे परिसर में सेंटर फॉर नैनो साइंस ऐंड इंजीनियरिंग (सीईएनएसई) की इमारत के एक कोने में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी लैब है. यह इतनी अधिक शांत और सहज काम की जगह है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. यहां शोर-शराबा भी फुसफुसाहट जैसा लगता है, क्योंकि उसे 30 डेसिबल से भी कम कर दिया जाता है, ताकि किसी अणु के गुणों की जांच सरीखे संवेदनशील माप किए जा सकें. यहीं हाल ही में एक कामयाबी हासिल हुई, जिससे भारत कंप्यूटिंग आविष्कारों के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित हो सकता है. यह आविष्कार एक नया उपकरण-एक कंप्यूटिंग एक्सेलरेटर - था जो डेटा को कंप्यूटर का दिमाग कहे जाने वाले माइक्रोप्रोसेसर के पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि एकदम इंसान के दिमाग की तरह प्रोसेस करेगा.
तो, न्यूरोमॉर्फिक या मस्तिष्क-प्रेरित कंप्यूटिंग की दुनिया में स्वागत है. इसमें तंत्रिका विज्ञान और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बीच एक मिलन बिंदु खोजने की कोशिश होती है. इसकी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत सिनैप्स है. सिनैप्स मानव शरीर में तंत्रिका के छोर पर स्थित जंक्शन होता है, जहां दो न्यूरॉन्स के बीच या न्यूरॉन और मांसपेशी कोशिका के बीच विद्युत आवेग प्रसारित होते हैं. एक्सेलरेटर के शोध और विकास में लगी आइआइएससी की सात सदस्यीय टीम के प्रमुख शोधकर्ता श्रीतोष गोस्वामी कहते हैं, "अगर आप सिनैप्स को देखें, तो यह एक एक्सॉन (जो न्यूरॉन सिग्नल प्रसारित करता है) और एक डेंड्रोन (जो उसे प्राप्त करता है) के बीच हजारों अवस्थाओं का डेटा संग्रह कर सकता है. इसलिए, सवाल यह है कि अगर मस्तिष्क इतनी सारी अवस्थाओं का डेटा संग्रह कर सकता है, तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्यों नहीं कर सकते." यह शोध पत्र ब्रिटेन के साप्ताहिक साइंटिफिक जर्नल नेचर में 11 सितंबर को प्रकाशित हुआ.
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