इन पर्चों को कौन करेगा हल
India Today Hindi|July 17, 2024
सबा अंजुम ने पीएचडी कर ली है और वे नेट की परीक्षा पास करने के बाद बिहार में कॉलेज या विश्वविद्यालय में पढ़ाना चाहती हैं. बिहार में ही पूर्णिया की रहने वाली सबा और उनके परिवार को उनकी नेट की परीक्षा रद्द होने से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया.
हिमांशु शेखर
इन पर्चों को कौन करेगा हल

उनके शौहर दिल्ली में प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते हैं. यह सोचकर वे दिल्ली आई थीं कि बकरीद का त्योहार परिवार के साथ मनाना है. 14 जून की रात में एनटीए ने 18 जून की नेट परीक्षा का एडमिट कार्ड जारी किया. उनका परीक्षा केंद्र पटना में था. ट्रेन का टिकट कन्फर्म न होने पर बर्थ शेयर करके ठीक बकरीद वाले दिन वे रवाना हुईं और 18 जून की सुबह पटना पहुंचीं. परीक्षा देकर शाम को फ्लाइट से दिल्ली लौटीं. पचीसेक हजार रुपए खर्च हुए पर उन्हें परीक्षा हो जाने का सुकून था. पर 24 घंटे के अंदर ही नेट की परीक्षा रद्द होने की खबर आ गई. वे कहती हैं, "मुझे लगा कि इस पूरी व्यवस्था ने मुझ जैसे लाखों अभ्यर्थियों की मेहनत पर पानी फेर दिया. मेरे जैसे लाखों छात्र परेशानियां उठाकर तैयारी करते हैं और परीक्षा देने जाते हैं."

कुछ ऐसी ही कहानी नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से पीएचडी कर रही शिवांगी सिंह की भी है. सेमेस्टर ब्रेक होने की वजह से वे परिवार के पास लखनऊ चली गई थीं. 15 जून की सुबह एडमिट कार्ड का पता चला. उनका सेंटर दिल्ली के बहुत रिमोट क्षेत्र में था. किसी तरह बस से वे दिल्ली आईं. 18 जून को मेट्रो और ऑटो बदलते हुए सुबह सात बजे परीक्षा केंद्र पहुंचकर पेपर दिया. अब वे कहती हैं: "सारी मेहनत व्यर्थ हो गई. ऐसा लगता है, सबका भरोसा टूट गया है."

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