विश्व हृदय दिवस के मौके पर 29 सितंबर को देश के दूसरे सभी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में दिल की बीमारियों से बचाव के लिए सेमिनार और जागरूकता कार्यक्रम हो रहे थे. सभी संस्थान इसके लिए अपने यहां की सेवाओं और उपलब्धियों को बखान रहे थे वहीं गोरखपुर एम्स में सन्नाटा पसरा था. हृदय रोगियों ने गोरखपुर एम्स की धड़कनें बढ़ा दी हैं. यहां कार्डियोलॉजी विभाग में महज एक डॉक्टर के भरोसे ही है इलाज, वह भी दिल की मामूली बीमारियों का. अगर किसी गंभीर मरीज को एंजियोग्राफी या एंजियोप्लास्टी की जरूरत पड़ गई तो उसका भगवान ही मालिक है. कहने को तो यह एम्स है लेकिन यहां हृदय रोगियों के इलाज के लिए 'कैथेटेराइजेशन' यानी 'कैथ लैब' ही नहीं. नतीजा दिल के गंभीर मरीजों को यह दूसरे अस्पतालों का रास्ता दिखा देता है.
गोरखपुर एम्स में कैथ लैब की स्थापना के लिए अब प्रयास शुरू हुए हैं. यहां कैंसर मरीजों की रेडियोथेरेपी के लिए दो साल पहले ही प्रयास शुरू हुए थे. पिछले साल अगस्त में 18 करोड़ रुपए खर्च करके लंदन से 'हाइएनर्जी लीनियर एक्सीलरेटर', 'सीटी सिमुलेटर' और 'ब्रेकी थेरेपी' जैसी अत्याधुनिक और महंगी मशीनें खरीदी गईं. इन मशीनों को एम्स के ओपीडी ब्लॉक की बगल में रेडियोथेरेपी बंकर बनाकर रख दिया गया. ये मशीनें साल भर वहीं पड़ी रहीं. अगस्त में स्थापना के लिए जब उनकी जांच हुई तो पता चला कि इनके कई तार चूहों ने कुतर डाले हैं. कंपनी को बताया गया. लंदन से कर्मचारी आए, उन्होंने पड़ताल की. पता चला कि लंबे समय से इस्तेमाल न लिए जाने से मशीन के कुछ पार्ट्स भी ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे. अस्पताल के जनसंपर्क अधिकारी अरूप मोहंती बताते हैं, "दिक्कत यह है कि मशीन कहीं से आती है और मटीरियल कहीं और से. इस वजह से रेडियोथेरेपी मशीनों को ठीक कराने में कुछ दिक्कतें आई हैं."
कैंसर के इलाज से जुड़ीं इन महंगी मशीनों के संचालन के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) से लाइसेंस भी लेना होता है. यहां रेडियो सेफ्टी ऑफिसर (आरएसओ) न होने से रेडियोथेरेपी मशीनों की स्थापना से जुड़ी प्रक्रिया नहीं शुरू की जा सकी थी. ये मशीनें कैंसर मरीजों के इलाज के लिए कब उपलब्ध होंगी? इसका जवाब फिलहाल प्रशासन के पास नहीं है. फिलहाल रेडियोथेरेपी के लिए आने वाले कैंसर मरीजों से गोरखपुर एम्स ने अपना मुंह मोड़ रखा है.
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