4 अक्तूबर को डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने राज्य के दक्षिण में बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिलों के सीमांत जंगलों में मिलकर हमला किया और माओवादियों को जबरदस्त झटका दिया. इस गोलाबारी में कंपनी नंबर 6 के पीएलजीए के 31 काडर मारे गए. यह छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के साथ हुई किसी एक मुठभेड़ में मारे गए माओवादियों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. सबसे अहम बात यह कि एक भी सुरक्षा जवान नहीं मारा गया. मारे गए काडरों में 29 खतरनाक माओवादी ऑपरेटिव थे, जिनके सिर पर कुल 2.15 करोड़ रुपए का सामूहिक इनाम था. यह मुठभेड़ नंदुर- थुलथुली गांवों के जंगलों के करीब हुई. इस जगह को माओवादी गढ़ के रूप में कुख्यात और घने जंगल वाले अबूझमाड़ (गोंड भाषा में अज्ञात इलाका) इलाके का दक्षिणी प्रवेश द्वार माना जाता है. मारे गए 31 माओवादियों में 13 महिलाएं हैं, जिनमें एक नीति भी है जो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की सदस्य थी. उस दिन मारे गए अन्य बड़े इनामी वांछित माओवादियों में डिविजनल कमेटी के तीन सदस्य और एरिया कमेटी के छह सदस्य शामिल हैं. 16 अप्रैल को कांकेर जिले में माओवादियों के खिलाफ एक ऑपरेशन में 29 काडर मारे गए थे.
इस पूरे मॉनसून के दौरान बस्तर में बंदूकें कभी शांत नहीं हुई और भारी बारिश भी सुरक्षा बलों की हिम्मत और साहस को कम नहीं कर पाई. 4 अक्तूबर के ऑपरेशन से पहले, आखिरी 10 दिनों में नक्सलियों के साथ सुरक्षाकर्मियों की तीन बड़ी मुठभेड़ हुई थीं. 23 सितंबर को सुकमा जिले में चिंतावगु नदी के दोनों ओर से सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच गोलीबारी हुई थी. सुरक्षा बलों ने दावा किया था कि कम से कम दो माओवादी मारे गए, मगर उनके शव चिंतावागु बहा ले गई.
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