उद्यम-नवाचार की उसकी इसी कोशिश से जिंदगी आसान होती है. मसलन, सत्तर के दशक में हरित क्रांति से पहले भारत खाद्यान्न के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर था. बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया होगा कि भारत पिछले दशक में हरित क्रांति 2.0 के दौर में प्रवेश कर गया. आज अगर भारत में सर्दियों की सब्जियां और फल गर्मियों में उपलब्ध हैं, तो यह कृषि क्षेत्र में नवाचार की ही वजह से. हमारे वैज्ञानिकों ने न केवल उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि फलों और सब्जियों में पोषक तत्वों और विटामिन की मात्रा भी बढ़ाई है. यह तो महज एक मिसाल है. तकनीक ने हर क्षेत्र में जीवन आसान बना दिया है.
ये इनोवेटर्स देश के महानगरों के साथ ही छोटे शहरों, कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी हैं. मिसाल के तौर पर बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में अशोक ठाकुर ने स्मोकलेस चूल्हा बनाया तो वहीं के रोजाद्दीन ने कॉफी मशीन का विकल्प तैयार कर दिया. लेकिन स्मोकलेस चूल्हे और कॉफी मशीन तो पहले से ही हैं. तो क्या अशोक ठाकुर और रोजाद्दीन ने पहिए का आविष्कार किया है ? कतई नहीं. उन्होंने सस्ता और सुलभ विकल्प मुहैया कराया है. यह खासकर इसलिए महत्वपूर्ण है कि महज दो साल पहले नवंबर में पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय मोतिहारी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) में वायु प्रदूषण के मामले में राजधानी दिल्ली से होड़ लगा रहा था.
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