भारत के बारे में सदियों से एक कहावत मशहूर है कि यहां 'कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी.' यानी भारत में हर एक कोस की दूरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और 4 कोस पर भाषा यानी वाणी बदल जाती है. यह भिन्नता खानपान, पहनावे, भाषा, आस्था सब में दिखती है, लेकिन इन जबरदस्त भिन्नताओं के बावजूद भारत एकता के सूत्र में बंधा रहा है. यहां के लोगों में भारतीयता की भावना सर्वोपरि रही है. अनेकता में एकता हमेशा से भारत का मूल स्वभाव था लेकिन बीते एक दशक से विघटनकारी शक्तियां बड़ी तेजी से भारत को उस के मूल स्वभाव से दूर करने की कोशिश में लगी हैं.
भारत टूट रहा है, दरक रहा है. पारिवारिक तौर पर, सामाजिक तौर पर और राजनीतिक तौर पर खंडखंड हो रहा है लेकिन सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग इस को स्वीकार नहीं करना चाहते. ऐसा क्यों ? क्योंकि इस टूटन से ही उन्हें राजनीतिक फायदा मिला है और उन का मानना है कि ध्रुवीकरण के जरिए ही वे सत्ताशीर्ष पर बने रह सकते हैं.
सत्ता का मजा लूट रहे लोग भारत के जनमानस के बीच इस संदेश को हरगिज जाने नहीं देना चाहते कि भारत टूट रहा है. वे जनता को धर्म और आस्था के भ्रमजाल में फंसाए रखना चाहते हैं.
जाति और धर्म के आधार पर समाज को बांटना देश के लिए ठीक नहीं है लेकिन देश में होने वाला हर छोटे से बड़ा चुनाव जाति व धर्म के नाम पर लोगों को बांट कर ही लड़ा जाता है. चुनाव के समय गरीब के जीवन से जुड़े असल मुद्दे सिरे से नदारद होते हैं. राजनेता देशवासियों के बीच द्वेष की भावना को पुख्ता कर राजनीति में अपना उल्लू तो सीधा कर रहे हैं मगर देश को वे जर्जर कर रहे हैं.
धार्मिक ध्रुवीकरण चुनाव में अन्य मुद्दों को पूरी तरह दरकिनार कर देता है. इस से पूरे देश का अहित हो रहा है. लोगों के दिमाग में जातीय और धर्म से जुड़ी दुर्भावनाएं डाल कर नेता अपनी कमियां छिपा लेते हैं. द्वेष से भरा मस्तिष्क इस के आगे कुछ सोच भी नहीं पाता और राष्ट्रीय मुद्दे गौण हो जाते हैं, लोकतंत्र कमजोर होने लगता है और समाज में धर्म व जाति के नाम पर वैमनस्यता बढ़ जाती है. विकास के मुद्दों से ध्यान हटा कर लोगों के अंदर धार्मिक और जातीय उन्माद पैदा किया जाना किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.
Bu hikaye Sarita dergisinin October First 2022 sayısından alınmıştır.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
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शादी से पहले बना लें अपना आशियाना
कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
बारबार पेशाब करने को मजबूर होना ओवरऐक्टिव ब्लैडर होने का संकेत होता है. यह समस्या पुरुष और महिलाओं दोनों को हो सकती है. महिलाओं में तो ओएबी और मेनोपौज का कुछ संबंध भी होता है.
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सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार है क्योंकि दान और पूजापाठ की व्यवस्था के साथ ही असमानता शुरू हो जाती है जो घर और कार्यस्थल तक बनी रहती है.
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कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला भड़ास या साजिश
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अमेरिका अब चर्च का शिकंजा
दुनियाभर के देश जिस तेजी से कट्टरपंथियों की गिरफ्त में आ रहे हैं वह उदारवादियों के लिए चिंता की बात है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने और बढ़ा दिया है. डोनाल्ड ट्रंप की जीत दरअसल चर्चों और पादरियों की जीत है जिस की स्क्रिप्ट लंबे समय से लिखी जा रही थी. इसे विस्तार से पढ़िए पड़ताल करती इस रिपोर्ट में.