कल एक अजीब चीज देखने को मिली. शाम के समय मैं औफिस से घर जा रही थी. मैट्रो ट्रेन का आखिरी स्टेशन था जहां मैं उतर गई. स्टेशन के लिए मैं एग्जिट ले जैसे ही गैलरी में आई, देखा, सारा कंपाउंड 15 से 25 साल के युवा लड़कों से भरा था. चारों तरफ वही थे. बाहर निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. मैं थोड़ा डर गई, कहीं कोई दंगा या उपद्रव तो नहीं हो गया पर सीआरपीएफ के जवानों की भारी तादाद में तैनाती देख थोड़ा सुकून आया. घर के लिए रिकशा लेने के बाद पता चला कि ये सब मैट्रोवौक में किसी सिंगर को देखने के लिए आए हुए थे. रिकशे वाले का कहना था, यह भीड़ तो बहुत कम है, आप एक घंटा पहले आते तो देखते, रोड इन्हीं से भरा हुआ था.
मैं स्तब्ध थी. सब युवा थे. उम्र कोई 18 से 30 के बीच ही रही होगी. किसी के पास ढंग के कपड़े तक नहीं थे और वे सब अपना समय इस तरह बरबाद करने के लिए इकट्ठे थे. क्या इन के पास कोई काम नहीं था, ये इस तरह भटक क्यों रहे थे? कितनी बेकारी हो गई है? इसका अंदाजा समय बरबाद करते ऐसे ही युवाओं के झुंड से लगाया जा सकता है.
लेकिन इन सब के पीछे जिम्मेदार कौन है? अचरज की बात है, क्यों यह भीड़, जो किसी राज्य की हालत बदल सकती है, इस तरह बेकार की चीजों में अपना समय नष्ट करना सही समझ रही है? कुछ कारण हैं जिन के बारे में बात की जा सकती है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं.
शिक्षा के मूल्य
पहली चीज जो हमें नजर आती है, कहीं न कहीं इन में हमें शिक्षा के मूल्यों की कमी है जो व्यक्ति की सोच व समझ विकसित करते हैं. सहीगलत जरूरीगैरजरूरी में फर्क समझाते हैं. जो तबका वहां दिखाई दे रहा था वह गरीब और पिछड़ा था. समय के सदुपयोग की मानसिकता अभी उन में विकसित हो गई हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता था. किसी शिक्षा संस्थान से ये जुड़े हों, ऐसा भी दिखाई नहीं पड़ता था. अगर ऐसा होता तो वे अपने संस्थान की गतिविधियों में बिजी होते, न कि यहां.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
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कपल्स शादी से पहले कई तरह की प्लानिंग करते हैं लेकिन वे अपना अलग आशियाना बनाने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं करते जिसका परिणाम कई बार रिश्तों में खटास और अलगाव के रूप में सामने आता है.
ओवरऐक्टिव ब्लैडर और मेनोपौज
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कर्ज लेकर बादामशेक मत पियो
कहीं से कोई पैसा अचानक से मिल जाए या फिर व्यापार में कोई मुनाफा हो तो उन पैसों को घर में खर्चने के बजाय लोन उतारने में खर्च करें, ताकि लोन कुछ कम हो सके और इंट्रैस्ट भी कम देना पड़े.
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कनाडा के हिंदू मंदिरों पर कथित खालिस्तानी हमलों का इतिहास से गहरा नाता है जिसकी जड़ में धर्म और उस का उन्माद है. इस मामले में राजनीति को दोष दे कर पल्ला झाड़ने की कोशिश हकीकत पर परदा डालने की ही साजिश है जो पहले भी कभी इतिहास को बेपरदा होने से कभी रोक नहीं पाई.
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