रश्मि की हार्दिक इच्छा थी कि नवरात्रों में जब उस का परिवार अपने खुद के फ्लैट में शिफ्ट हो तो के उस में एक कोना मंदिर के लिए भी हो. अभी तक रश्मि का परिवार किराए के घर में रह रहा था, लेकिन उस के पति और बेटे ने पैसे जमा कर के आखिरकार उस के अपने घर का सपना इस साल पूरा कर दिया. किराए के घर में इतनी जगह नहीं थी कि अलग से मंदिर बन सके मगर नए फ्लैट में बिल्डर ने जो स्टोररूम बनाया है, उस को वह मंदिर के रूप में बदलने को उतावली थी. उस स्टोररूम में एक बढ़िया सजे हुए मंदिर में ही इस बार दीवाली की पूजा हो, ऐसा उस का मन था.
आखिर बेटे ने उस की वह ख्वाहिश पूरी की और नवरात्र के पहले ही दिन वह सफेद मार्बल का एक बड़ा मंदिर खरीद लाया. इतना सुंदर मंदिर देख कर रश्मि तो झूम उठी. वह दूसरे ही दिन अपनी पड़ोसिन अंकिता के साथ सदर बाजार निकल गई ताकि नए मंदिर में सजाने के लिए भगवान की मूर्ति और पूजा से जुड़ी चीजें खरीद लाए. रश्मि कई सालों के बाद सदर मार्केट गई थी. वहां का तो रंगरूप ही बदला हुआ था. पहले पूजा आदि से जुड़ी चीजों की जहां सिर्फ दोतीन दुकानें होती थीं, अब पूरी एक सड़क इन्हीं सामग्रियों से भरी हुई थी.
धार्मिक चीजों की खरीदारी के लिए ग्राहक दुकानों जैसे टूटे पड़ रहे थे. नवरात्र के त्योहार की वजह से पूरा बाजार धार्मिक सामग्री से पटा पड़ा था. हर दुकान में जमीन से ले कर छत तक चीजें सजी हुई थीं. इतना सामान था कि कई दुकानों के तो भीतर ही नहीं समा रहा था. दुकानदारों ने दुकानों के बाहर आधीआधी सड़कें घेर कर बड़ेबड़े तख्त बिछा कर उन पर सामान डिस्प्ले कर रखा थे.
हर चीज की दसदस वैराइटियां मौजूद थीं. माता की चुन्नी 5 रुपए से ले कर 5 हजार रुपए तक की. भगवानों की मिट्टी की मूर्तियां 100 रुपए से ले कर 500 रुपए तक की थीं जबकि धातु की मूर्तियों के दाम तो आसमान छू रहे थे. 8 हजार, 10 हजार, 15 हजार रुपए कीमत की मूर्तियां थीं. जिस की जैसी श्रद्धा वैसी मूर्तियां खरीद रहा था.
रश्मि ने लक्ष्मी गणेश, राम सीता लक्ष्मण, मां दुर्गा, शिवजी, कृष्ण भगवान और साईं बाबा की एकएक मूर्ति अपने मंदिर के लिए खरीदीं.
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