भारत की राजनीति में धर्म और धर्मनिरपेक्षता के बीच की जंग आजादी के पहले से रही है. दोनों सांपसीढ़ी जैसा खेल खेलते हैं. कई बार धर्मनिरपेक्षता जीत के करीब पहुंच जाती है. अचानक उसे झटका लगता है और वह धड़ाम से नीचे आ गिरती है.
धर्मनिरपेक्ष यानी सैक्युलर सरकार चलाने का एक अलग सिद्धांत है. इस का शासन लोगों के चुने हुए विद्वानों के लाए संविधान की ताकत पर चलता है. इस के 2 प्रमुख विचार होते है. पहला, सरकार चलाने के लिए बने नियमों में धर्म का हस्तक्षेप नहीं होगा. दूसरा, सभी धर्मों को मानने वालों के लिए कानून, संविधान व सरकारी नीति एकसमान होगी.
धर्मनिरपेक्षता यानी सैक्युलरिज्म शब्द का पहले पहल प्रयोग बर्मिंघम के जौर्ज जैकब हौलियौक ने वर्ष 1846 में किया था. उन के अनुसार, 'आस्तिकता, नास्तिकता और धर्मग्रंथों में उलझे बगैर मानव के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक, बौद्धिक स्वभाव को उच्चतम संभावित बिंदु तक विकसित करने के लिए प्रतिपादित ज्ञान और सेवा धर्मनिरपेक्षता है.'
भारत में धर्मनिरपेक्षता शब्द का उल्लेख 1976 में संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के द्वारा डाला गया था. वैसे, संविधान सारा का सारा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर बना हुआ है और इस शब्द को 1976 में जोड़ना अपने आप में महत्त्व का नहीं है. 1950 में लागू संविधान पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है और धर्म के दुकानदार के ऊपर आम नागरिक को हक देता है.
लेकिन पिछले वर्षों में स्पष्टतया धर्मनिरपेक्षता की अवहेलना की गई है. मुसलिम संप्रदाय ही नहीं, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध सब के सब दूसरे दर्जे के नागरिक बन रहे हैं. भारत के 75वें गणतंत्र दिवस के 4 दिनों पहले यानी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संवैधानिक पद पर रहते हुए यजमान बन कर अयोध्या में नए राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा करवाई. उस से पहले नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2020 में उस नए संसद भवन के लिए भूमिपूजन जजमान की तरह से किया था जो धर्मनिरपेक्षता का जनक है. इस के बाद नए संसद भवन का उद्घाटन धर्मनिरपेक्षता को हवा में उड़ाते हुए पूरी तरह से हिंदू प्रतीक और रीतिरिवाज से किया गया था.
This story is from the October Second 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October Second 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
अच्छा लगता है सिंगल रहना
शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.
मां के पल्लू से निकलें
पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.
पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी
जिन लोगों को आहार से मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अति आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते और शरीर में इन की कमी हो जाती है, उन में कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा हो सकता है.
क्या शादी छिपाई जा सकती है
शादी का छिपाना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा क्योंकि अब इस पर कानूनी एतराज जताए जाने लगे हैं. हालांकि कई बार पहली या दूसरी शादी की बात छिपाना मजबूरी भी हो जाती है. इस की एक अहम वजह तलाक के मुकदमों में होने वाली देरी भी है जिस के चलते पतिपत्नी जवान से अधेड़ और अधेड़ से बूढ़े तक हो जाते हैं लेकिन उन्हें तलाक की डिक्री नहीं मिलती.
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.
अदालती पेंचों में फंसी युवतियां
आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बना वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.