साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
Sarita|December First 2024
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
गायत्री ठाकुर
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो दिखा, जिस में एक महिला अनिरुद्धचार्य के समक्ष खड़ी माइक पर कह रही थी, 'भगवान मिलने के लिए उसे बुला रहे हैं, वह भगवान से मिलने जाना चाहती है.' वह यह बात बारबार दोहराती हुई कह रही थी. इसी तरह के एक अन्य वीडियो में एक दूसरी महिला भी कुछ इसी तरह की बात कहती हुई दिखी. यह दूसरी महिला भी ठीक यही बात पूछ रही थी, 'गुरुजी, मुझे भगवान कब मिलेंगे?'

इन दोनों ही महिलाओं में एक बात सामान्य है कि ये दोनों ही धार्मिक अंधविश्वास में इतनी गहराई तक डूबी हुई थीं कि ईश्वर संबंधित कल्पनाएं भी उन्हें सत्य लगने लगीं. वे इसे इस हद तक सत्य समझने लगीं कि इन के मन में ईश्वर से मिलने की गहरी इच्छा जागृत हो गई. ईश्वर से मिलने की व्याकुलता इन की मानसिक स्थिति पर प्रश्नचिह्न तो लगाता ही है, साथ ही, यह सवाल भी खड़ा करता है कि धार्मिक अंधविश्वास या फिर ईश्वर के प्रति अंधभक्ति किसी व्यक्ति के व्यवहार, उस के सोचनेसमझने की शक्ति व उस के क्रियाकलापों को किस तरह प्रभावित करता है.

कुछ वर्षों पहले राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के एक निवासी ने ईश्वर से मिलने की चाहत में अपने पूरे परिवार के साथ खुदकुशी कर ली थी. यह घटना उस समय सोशल मीडिया पर काफी वायरल भी हुई थी.

यह घटना कुछ इस प्रकार है- गंगापुर सिटी का रहने वाला कंचन सिंह, जोकि पेशे से फोटोग्राफर था, ने भगवान से मिलने की चाह में परिवार के साथ सायनाइड मिला लड्डू खा कर खुदकुशी कर ली थी. कंचन सिंह ने परिवार के साथ इस सामूहिक खुदकुशी का वीडियो भी बनाया था.

अपने इस वीडियो में कंचन सिंह परिवार के हर शख्स से पूछता हुआ नजर आ रहा था कि वे सभी लोग क्यों मरना चाहते हैं व मरने के विषय में सब के विचार क्या हैं? तब सभी ने भगवान से मिलने के लिए मरने की इच्छा बतलाई थी.

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