15 अगस्त, 2024 को लालकिले से सैक्युलर सिविल कोड और उस के जुड़वां भाई कम्युनल सिविल कोड शब्दों का जन्म हुआ है वरना तो इन शब्दों का जिक्र किसी शब्दकोष, कानूनी किताब या संविधान में नहीं मिलता. 15 अगस्त, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन शब्दों का इस्तेमाल करते कहा, हम ने कम्युनल सिविल कोड में 75 साल बिताए हैं, अब हमें सैक्युलर सिविल कोड में जाना होगा, तभी हम धर्म के आधार पर भेदभाव से मुक्त हो सकेंगे.
बस, इतना सुनना था कि जल्द ही इन शब्दों के माने और मंशा सामने आ गए कि दरअसल नरेंद्र मोदी यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात कर रहे हैं. यह बात रत्तीभर भी नई नहीं है, बल्कि यह भाजपा के सनातनी एजेंडे का सनातनी हिस्सा है जिस का मकसद सिर्फ और सिर्फ कट्टर हिंदुओं को खुश करना, पौराणिक एवं धर्म राज स्थापित करना और मुसलमानों को कानूनी डंडा दिखा कर डराना व परेशान करना है, ठीक वैसे ही जैसे तीन तलाक कानून और जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया था और जीएसटी कानून ला कर राज्य सरकारों का संघीय अधिकार कम करना था.
यूनिफॉर्म सिविल कोड या सैक्युलर सिविल कोड का समाज के सामाजिक सुधारों से कोई लेनादेना नहीं है. यह बहुसंख्यक हिंदुओं को विवाह या विरासत के कानूनों में कोई छूट देने के लिए बनाया जाने वाला प्रस्ताव नहीं है, यह सिर्फ मुसलिम और ईसाई विवाह, विरासत, तलाक कानूनों में दखलंदाजी का उद्देश्य लिए है.
आज भी हिंदू औरतें पतियों के जुल्मों की मारी हैं. तलाक के लिए वर्षों उन की चप्पलें अदालतों में घिसती हैं. हिंदू समाज विवाह के विषय में जाति और दहेज से मुक्त नहीं हुआ है. विरासत में बेटियों को पराया माना जा रहा है. हिंदू संयुक्त परिवार कानून के कारण रामायण और महाभारत काल से भाई भाई में जो विवाद होता था, आज भी होता है क्योंकि जो सुधार कानूनों ने किए उन्हें लागू करने में लोगों, सरकारों, अदालतों और भगवा गैंग ने स्पीडब्रेकर लगा कर धीमा कर दिया.
संविधान का तुलनात्मक अध्ययन
This story is from the September First 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the September First 2024 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
अच्छा लगता है सिंगल रहना
शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.
मां के पल्लू से निकलें
पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.
पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी
जिन लोगों को आहार से मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अति आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते और शरीर में इन की कमी हो जाती है, उन में कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा हो सकता है.
क्या शादी छिपाई जा सकती है
शादी का छिपाना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा क्योंकि अब इस पर कानूनी एतराज जताए जाने लगे हैं. हालांकि कई बार पहली या दूसरी शादी की बात छिपाना मजबूरी भी हो जाती है. इस की एक अहम वजह तलाक के मुकदमों में होने वाली देरी भी है जिस के चलते पतिपत्नी जवान से अधेड़ और अधेड़ से बूढ़े तक हो जाते हैं लेकिन उन्हें तलाक की डिक्री नहीं मिलती.
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.
अदालती पेंचों में फंसी युवतियां
आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बना वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.