लॉकडाउन के चार साल
कोविड मरीजों की देखभाल में लगे डॉक्टर, नर्स और एंबुलेंस चालकों ने कहा कि कोविड-19 महामारी में उन्हें कई अनुभव मिले, जिनसे उनके जीवन में बड़े बदलाव आए
लगभग 12 घंटे काम करने के बाद बुरी तरह थक चुकी मंजूषा का शरीर आराम मांग रहा था। मंजूषा धीरे-धीरे 26 मंजिला इमारत की सीढ़ियां चढ़ने लगीं। उनका अपार्टमेंट 18वीं मंजिल पर था। उनकी सोसाइटी ने उन्हें लिफ्ट का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था। लोगों को डर था कि कोविड अस्पताल में काम करने वालीं मंजूषा कहीं उन्हें संक्रमित न कर दें।
मंजूषा ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘मेरे पड़ोस में रहने वाले कुछ लोग मुझसे सहानुभूति रखते थे। उनका सुझाव था कि अगर मैं इस्तेमाल के बाद लिफ्ट साफ-सुथरी कर दूं तो दूसरों के संक्रमित होने का खतरा काफी कम हो जाएगा। मगर सोसाइटी के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि मुझे लिफ्ट में नहीं जाना चाहिए।’
कोविड के दौरान आवश्यक एवं अनिवार्य सेवाओं में लगे लोगों (फ्रंटलाइन वर्कर) में मंजूषा अकेली नहीं थीं, जिन्हें उपेक्षित एवं अलग-थलग कर दिया गया था। कोविड काल में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कई लोगों को तो सोसाइटी के अहाते में भी नहीं घुसने दिया जाता था। कुछ लोग तो अस्तपतालों में ही रहते थे। मरीजों की देखभाल करते इनमें कई लोग संक्रमित हो गए, कई बीमार हो गए और कुछ मौत का शिकार हो गए।
24 मार्च, 2020 को कोविड महामारी फैलने से रोकने के लिए देश में लॉकडाउन लगा दिया गया। लॉकडाउन के ऐलान के करीब चार वर्ष बाद आवश्यक सेवाओं में काम करने वाले कुछ लोगों ने अपने अनुभव साझा बताए। उन्हें लगा कि कोविड के दौरान मिले अनुभवों ने उन्हें और मजबूत बना दिया और उन्हें अपने कार्य एवं पेशे पर गौरव हो रहा था।
मार्च 2020 में भारत में कोविड के मामले 500 से कुछ अधिक हुए थे कि लॉकडाउन लगा दिया गया। मार्च अंत तक संक्रमण के मामले बढ़कर 1,000 से अधिक हो गए। अप्रैल तक मामले 10,000 पार कर गए। कोविड-19 वायरस तेजी से फैल रहा था।
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