निद्रा सुषुप्तावस्था का दूसरा नाम है। इस अवस्था में व्यक्ति चेतनाहीन हो जाता है, उसे बाह्य संसार का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता है और न ही उसके सामने कोई काल्पनिक संसार ही रहता है। बाह्य संसार के ज्ञान की अवस्था जागृतावस्था है और काल्पनिक संसार के ज्ञान की अवस्था स्वप्न कहलाती है। तुरिया अवस्था ब्रह्म ज्ञान की होती है। यह अवस्था केवल योग साधना से प्राप्त होती है और दुर्लभ है।
जाग्रतावस्था में शक्ति का प्रवाह मस्तिष्क की और होता है, इस कारण शरीर के दूसरे अंगों को पर्याप्त शक्ति नहीं मिल पाती । निद्रावस्था में शारीरक थकान दूर होकर शरीर और मन स्वस्थ होता है।
निद्रा और स्वास्थ्य
निद्रावस्था मे मनुष्य विचारशून्य हो जाता है और उसके मस्तिष्क की प्रबल क्रियाएँ रुक-सी जाती हैं और ऐसी अवस्था में शक्ति का संचार शरीर के दूसरे अंगों की ओर होने लगता है।
पाचनक्रिया के भलि-भाँति होने के लिए विचारों का चलना बंद होना आवश्यक है। निद्रावस्था में पाचनक्रिया सुचारू रूप से होती है।
निद्रा मनुष्य के सही स्वास्थ्य की सूचक है, प्रतिदिन निर्विघ्न निद्रा होना स्वास्थ्यप्रद होता है।
आचार्य चरक ने निद्रा की सांगोपांग सुंदर विवेचना की है-
"यदा तु मनसि क्लान्ते क्लमान्विताः कर्मात्मानः ।
विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः ॥"
अर्थात पुरुष कर्म वृत्ति एवं उसके कारण विशेषतया मन जब थक जाता है तो बाह्य विषयों से निवृत हो जाता है और फलत: व्यक्ति सो जाता है।
वस्तुतः निद्रा व्यस्त जीवन में पूर्ण शांति प्रदान करती है। जिस प्रकार गर्भस्थ शिशु माता के घर में सब प्रकार से सुरक्षित हो कर सोता है, उसी प्रकार जीव भी अपने को सब प्रकार की उत्तेजनाओं से दूर रख कर सब प्रकार से सुरक्षित होकर शयन काल में मानव गर्भस्थ शिशु का अभिनय करता है।
हृदय अधोमुख कमल के समान है। व्यक्ति के जगे रहने पर वह विकसित होता है और सो जाने पर निमीलित हो जाता है। हृदय संपूर्ण चेतनाओं का अधिष्ठान है। उस अधिष्ठान में तमोगुण का प्रवेश होने से प्राणियों में निद्रा का प्रवेश हो जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए तो निद्रा आवश्यक है ही, अपितु निद्रा शारीरीक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।
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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।