धर्महित समर्पित वीर गुरु पुत्रों की गौरव गाथा
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|December 2022
२६ दिसम्बर वीर बाल दिवस पर विशेष
लखेश्वर चन्द्रवंशी 'लखेश'
धर्महित समर्पित वीर गुरु पुत्रों की गौरव गाथा

सम्पूर्ण भारत को इस्लाम का अनुयायी बनाने के उद्देश्य से मुगल शासन द्वारा अनेक स्थानों पर मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई जा रही थीं। हिन्दुओं पर नाना प्रकार के कर लगाए गए । कोई भी हिन्दू शस्त्र धारण नहीं कर सकता था। उस समय घोड़े पर सवारी करना भी हिन्दुओं के लिए वर्जित था। मुगल शासक भारतीय संस्कृति तथा धर्म को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहते थे गोविन्द सिंह के। गुरु चार वीर पुत्र थेअजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। एक बार गुरु गोविन्द सिंहजी आनंदपुर में थे । मुगलों ने पहाड़ी नरेशों की सहायता आनंदपुर को चारों ओर से घेर लिया। मुगल सेना अनेक प्रयत्नों के बाद भी किले पर विजय पाने में असफल रही। हताश होकर औरंगजेब ने गुरुजी को सन्देश भिजवाया। औरंगजेब ने कुरान की शपथ लेकर कहा कि यदि गुरु गोविन्द सिंह आनंदपुर का किला छोड़ कर चले जाते हैं तो उनसे युद्ध नहीं किया जाएगा। गुरुजी को औरंगजेब के इस कथन पर विश्वास नहीं था, फिर भी सिखों से चर्चा कर गुरुजी घोड़े पर सवार होकर, सिख सैनिकों के साथ आनंदपुर से बाहर निकल गए। बाहर निकलते ही मुगल सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। सरसा नदी के किनारे भयंकर युद्ध हुआ। सिख सैनिक बहुत कम संख्या में थे। फिर भी उन्होंने मुगलों का डटकर सामना किया और मुगल सेना के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। गुरुजी युद्ध करते हुए चमकौर की ओर बढ़ने लगे। उस समय गुरुजी के दोनों बड़े पुत्र अजीत सिंह तथा जुझार सिंह उनके साथ थे।

दूसरे दिन मुगलों के साथ सिखों का भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में वीरता के साथ लड़ते हुए १८ वर्षीय भाई अजीत सिंह तथा १५ वर्षीय जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए।

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