Panchjanya - December 25, 2022
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Bu konuda
नए भारत के शिल्पी
वाजपेयी
अटलजी के मन में हमेशा भारत बसा रहा और अब भारत के मन में अटलजी बसते हैं.
आखिर भारत को परम वैभव के पथ पर आगे ले जाने,समर्थ और शक्तिशाली बनाने का प्रथम
श्रेय उन्हीं को जाता है.अटलजी की जयंती पर उनकी उपलब्धियों और स्मृतियों को संकलित करता
पांचजन्य का यह विशेष अंक
नींव के पत्थर मील के पत्थर
वामपंथ की आंधी और जनसंघ भाजपा के अंध-विरोध के तूफानों को चीर कर भारत के प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में आधुनिक भारत की नींव के पत्थर रखे, और मील के पत्थर स्थापित किए
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एक कवि हृदय राजनेता
मेरे और अटल जी के बीच संबंधों में कभी स्पर्धा की भावना नहीं रही। कभी-कभी हम दोनों के विचार अलग-अलग रहे हैं। लेकिन हमने कभी ऐसे मतभेदों को बढ़ावा नहीं दिया, जिससे परस्पर विश्वास और आदर का मूल्य कम हो
5 mins
'थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री नहीं रहूंगा'
28 मई, 1996 को अपने मंत्रिमंडल के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस के बाद अटल जी ने चर्चा का उत्तर दिया। इस लेख की शुरुआत उनके उसी भाषण से होती है
5 mins
गुटनिरपेक्षता नहीं है तटस्थता
दुनिया अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति का लोहा मानती है। जनता पार्टी की सरकार में वे विदेश मंत्री थे। ऐसे ही जब भी संसद में विदेशी मामलों पर चर्चा होती थी, वे अपने विचारों से लोगों को चकित कर देते थे
5 mins
समाज का हित ही लेखनी का ध्येय
अटल जी ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘पाञ्चजन्य' के प्रथम संपादक थे। पत्रकारिता छोड़ कर राजनीति में पूरी तरह रम जाने और राजनीतिक ऊंचाइयां चढ़ने के बाद भी अटल जी की न सिर्फ दृष्टि और लेखनी की धार पैनी बनी रही बल्कि पत्रकारिता के तमाम पहलुओं पर वह चिंतन भी करते थे
4 mins
पाञ्चजन्य के प्रश्न अटल जी के कालजयी उत्तर
देश के पूर्व प्रधानमंत्री, सर्वप्रिय राजनेता, कवि, पत्रकार और पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का पाञ्चजन्य के साथ संवाद सदैव बना रहा। यहां तक कि पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले पाञ्चजन्य को ही साक्षात्कार दिया था। संभवतः अटल जी ने पाञ्चजन्य को ही सबसे अधिक साक्षात्कार दिए। उन्हीं साक्षात्कारों में से यहां प्रस्तुत हैं चुनिंदा प्रश्न और अटल जी के कालजयी उत्तर
3 mins
शिक्षा का रंग भगवा नहीं तो क्या हो ?
5 जनवरी, 2003 को तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी के 69वें जन्म दिवस पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संबोधन के अंश -
2 mins
संसद और सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा संविधान
अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 फरवरी, 1970 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा न्यायपालिका के विरुद्ध मोर्चा खोलने के संदर्भ में संसद में वक्तव्य दिया था। प्रस्तुत हैं उसी वक्तव्य के अंश-
2 mins
अयोध्या हमारे स्वाभिमान की प्रतीक
अयोध्या किसी नगर का नाम नहीं है। वह किसी मंदिर-मस्जिद विवाद की भी जगह नहीं
2 mins
'धर्मनिरपेक्षता' सिर्फ नारा नहीं
एक वास्तविक ‘धर्मनिरपेक्ष' समाज बनाने का कार्य तभी पूरा होगा, जब भारतीयत्व स्वयं को प्रभावी रूप में प्रकट करेगा ताकि हम संकीर्ण आस्थाओं से ऊपर उठकर यह अनुभव कर सकें कि हम एक राष्ट्र
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हर आदमी को तिरंगे के सामने झुकना पड़ेगा
अटल जी ने कई अवसरों पर इस्लाम, मुसलमान और कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के छिपे इरादों को रेखांकित किया। इस संदर्भ में उनके सारगर्भित भाषणों के अंश प्रस्तुत हैं-
2 mins
तवांग से जुड़े हैं राजनीतिक तार
तवांग में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिश चीन की सैन्य रणनीति के बजाय राजनीतिक रणनीति ज्यादा प्रतीत होती है। इससे पहले गलवान में और उससे पूर्व डोकलाम में भी भारत-चीन टकराव के साथ राजनीतिक पहलू जुड़ा दिखता है
5 mins
रातों-रात बनी 'मजारें', देखते-देखते गायब
उत्तराखंड में अवैध मजारों को गिराने का काम शुरू। राज्य की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने को ऐसी कार्रवाई जरूरी
2 mins
गोवा मुक्ति आंदोलन के बलिदानी के
गोवा को आजाद कराने में रा. स्व. संघ के स्वयंसेवकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे ही एक निष्ठावान कार्यकर्ता थे बलिदानी राजा भाऊ महाकाल, जो गांव-गांव से सैकड़ों युवाओं को एकत्रित कर गोवा ले गए
4 mins
Panchjanya Magazine Description:
Yayıncı: Bharat Prakashan (Delhi) Limited
kategori: Politics
Dil: Hindi
Sıklık: Weekly
स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।
अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।
किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।
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