Uday India Hindi - July 25, 2021Add to Favorites

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July 25, 2021

केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल के निहितार्थ

मंत्रिपरिषद में शामिल लोगों के जातीय और धार्मिक आधार को देखें तो स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। मौजूदा मंत्रिपरिषद में सबसे ज्यादा अन्य पिछड़ी जातियों के 27 मंत्री शामिल किए गए हैं। कभी जिस अन्य पिछड़े वर्ग के मतों पर जनता परिवार और सामाजिक पृष्ठभूमि वाले दल अपना हक मानते थे, उस आधार में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त सेंध लगाई है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में यादव समुदाय को छोड़ दें तो तकरीबन समूचे अन्य पिछड़े वर्ग पर भाजपा का जादू चल रहा है। अगले चुनावों में यह जादू बरकरार रह सके, इसलिए इस वर्ग को तवज्जो देना भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी ही नहीं, जरूरत भी है। इसीलिए इस वर्ग के पांच लोगों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल के निहितार्थ

1 min

कैबिनेट विस्तार: खुले संभावनाओं के द्वार

मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अधिकांश मंत्री अपना पदभार ग्रहण करके काम में लग गए। दरअसल, नए मंत्रियों में एक संदेश अच्छे से गया है कि जब धुरंधर किस्म के मंत्री खराब परफॉर्मेंस पर निपटा दिए जाते हैं, तो उनकी क्या बिसात? स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार की अगुवाई करने वाले सभी मंत्रियों को एक ही झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उनके सिवाए दूसरे दर्जन भर मंत्रियों को भी उनके औसत परफॉमेंस पर छुट्टी दे दी।

कैबिनेट विस्तार: खुले संभावनाओं के द्वार

1 min

इस्लामिक देशों में बदलाव की बयार

आश्चर्य है कि जो इस्लाम विज्ञान एवं तकनीक को लगभग अस्पृश्य-सा समझता है, साहित्य, संगीत, कला और अभिव्यक्ति पर तमाम प्रकार के पहरे लगाता है, वह नमाज एवं अजान के लिए वैज्ञानिक उपकरणों एवं अविष्कारों के प्रयोग से परहेज नहीं करता! असली तार्किकता एवं वैज्ञानिकता समय के साथ चलने में है। यह सऊदी अरब की सरकार का बिलकुल उचित एवं समयानुकूल फैसला है कि एक निश्चित समय के बाद एवं निश्चित ध्वनि से ऊंची आवाज में मस्जिदों पर लाउडस्पीकर न बजाया जाय।

इस्लामिक देशों में बदलाव की बयार

1 min

जनसंख्या विस्फोट पर लगे लगाम

सारा विश्व आज बढ़ती हुई जनसंख्या से अत्यधिक चिंतित है। प्रकृति और देश के संसाधन सीमित होते हैं और जनसंख्या वृद्धि से उन पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, उनका अत्यधिक दोहन होता है। पूरे विश्व में भारत जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नंबर पर आता है। पहले नंबर पर चीन है, किंतु कुछ रिपोर्टों से आशंका जताई गई है कि अगले कुछ वर्षों में भारत जनसंख्या की दृष्टि से चीन को भी पछाड़ देगा। यह बहुत ही चिंतनीय विषय है।

जनसंख्या विस्फोट पर लगे लगाम

1 min

कब तक दहेज की आग में जलती रहेंगी बेटियां?

भारत में दहेज हत्या और दहेज के मामलों के खिलाफ सशक्त कानून मौजूद हैं। जरूरत इस बात की है कि दहेज दोषियों को इन कानूनों की गिरफ्त मे लाया जाये। इन कानूनों को जो लोग अमल में लाते हैं पुलिस, प्रशासन व न्यायलय के कर्मचारी व अधिकारी, उन्हें दहेज समस्या और दहेज पीड़ितों के प्रति संवेदनशील बनाया जाये। अगर वे दहेज पीड़ित महिला की फरियाद को आम प्रकरण के रूप मे लेते हैं और काम-टालू तरीके से उस पर कार्यवाही करते हैं या कार्यवाही करते समय अपना हित सामने रखते हैं और पीड़ित महिला व समाज के हित की उपेक्षा करते हैं तो कानून निष्प्रभावी सिद्ध होगे ही।

कब तक दहेज की आग में जलती रहेंगी बेटियां?

1 min

अश्वगंधा की खेती की ओर बढ़ा किसानों का रुझान

अश्वगंधा की खेती के लिए जरूरी है कि वर्षा होने से पहले खेत की दो-तीन बार जुताई कर लें। बुआई के समय मिट्टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो रही हो तथा बीजों में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल को छिटकवां विधि से भी बोया जा सकता है।

अश्वगंधा की खेती की ओर बढ़ा किसानों का रुझान

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प्राणवायु ही नहीं जीवन के आधार हैं वृक्ष

पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'परि'+'आवरण'। 'परि' का अर्थ हैचारों ओर और 'आवरण' का अर्थ है-घेरा। वह घेरा जो हमारे चारों ओर व्याप्त है और जिसमें हम जन्मते, बढ़ते व जीवनयापन करते हैं, पर्यावरण कहलाता है। आज प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जिस तरह से और जिस स्तर पर किया जा रहा है, उससे पर्यावरण को निरंतर खतरा बढ़ता जा रहा है।

प्राणवायु ही नहीं जीवन के आधार हैं वृक्ष

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गांधीवाला उर्फ ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार

दिलीप साहब को पसंद किए जाने का सबसे बड़ा कारण यह था, कि उनके जीवन, और अदाकारी में अपना देश, इंसानियत, अदब के साथ एक अलग सा मुकम्मल लहजा भरा हुआ था। साहित्य में इसे ग्रेस फुलनेस के अलावा कुछ नहीं कह सकते। वो निकले थे, तो पेशावर से थे, मगर पता नहीं भारत के छोटे-छोटे गांव उनमें कहां से बस गए थे। कहीं कोई फुहड़ता नहीं, कभी वाचालता नहीं। आज अटलजी होते तो आडवाणीजी के साथ दिलीप साहब को यह कहकर बिदा देते, आ इस शजर से लिपटकर रो लें जरा, कि तेरे मेरे रास्ते यहां से जुदा होते हैं।

गांधीवाला उर्फ ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार

1 min

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