आदिवासियों के इस संकट को मोदी सरकार द्वारा लाए गए एनआरसी और सीएए ने और अधिक गहरा कर दिया है। जो आदिवासी 2005 से पहले जंगलों में अपनी रिहाइश साबित नहीं कर पाए, अब उन्हें 1971 से पहले भारत में अपनी रिहाइश के कागजात जुटाने होंगे।
Bu hikaye Loksangharsh Patrika dergisinin October 2020 sayısından alınmıştır.
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निशाने पे आंदोलन समर्थक
मुसलमानों के अहम त्यौहार बकरीद (कुर्बानी) का महीना शुरू हुआ ही है के भारत में खास धार्मिक विचारधारा के लोग, एनजीओ, पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से कोरोना की आड़ लेकर उनके मजहबी आजादी पर नकेल कसने जमीन पर फैल गए हैं।
राष्ट्र के लिए घातक है संविधान में बदलाव
हमें आज हमारे संविधान और हमारे देश को वर्तमान सरकार से बचाने की जरूरत है। आजादी के बाद से इसके पहले कभी भी ऐसी आवश्यकता नहीं हुई, और न ही लोगों को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जहाँ कानून का शासन नहीं बल्कि कानून रहित शासन इस भूमि पर चल रहा है।
सीएए, एनआरसी के कारण मूल निवासियों का अस्तित्व खतरे में
फरवरी 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार भारत के वन क्षेत्र में रह रहे 21 लाख आदिवासी जो यह साबित नहीं कर पाए कि वे 2005 से पहले से इन वनों में रह रहे हैं, उन्हें जंगलों से खदेड़ दिया जाएगा।