गेहूं और चावल के बाद भारत में मक्का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण खाद्य अनाज हैं। इसका मुख्य रूप से प्रत्यक्ष मानव उपभोग और पशु पोल्ट्री फीड के लिए उपयोग किया जाता है। मक्का को अनाज के बीच अपनी उपज क्षमता के कारण चमत्कारिक फसल या अनाज की रानी के रूप में जाना जाता हैं। भारत में मक्का लगभग 9.26 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में 2.4 मिलियन टन उत्पादन के साथ उगाया जाता है और औसत उत्पादकता लगभग 2560 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है। हरियाणा में खरीफ के दौरान क्रमशः 8 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में 18 हजार टन उत्पादन और 2250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की औसत उपज के साथ खेती की जाती है।
मक्का का विश्व कृषि में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में अनाजों के क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर पैदावार में मक्का का तीसरा स्थान, कुल उत्पादन में चौथा तथा कुल क्षेत्र में पांचवा स्थान है। लेकिन मक्का में लगने वाले रोग इसकी उत्पादकता व गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। मक्का की फसल पर 65 रोगों में से 16 रोग फसल पर प्रतिकूल असर डालते हैं। इन रोगों के कारण फसल में 13.2 प्रतिशत की हानि होती है। मौसम अनुकूल होने के कारण खरीफ मक्का में रोग अधिक लगते हैं। यदि किसान भाई मक्का में लगने वाले रोगों की सही पहचान करके उनकी रोकथाम कर लें तो मक्का का उत्पादन व उत्पादकता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। मक्का में लगने वाले प्रमुख रोगों के लक्षण व उनकी रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं:
1. बीज गलन और अंगमारी : यह रोग पिथियम, पैनिसिलियम, फ्यूजेरियम, एक्रीमोनियम व स्कलेरोसियम नामक फंफूद के कारण होता हैं इस रोग से बीज या उगता हुआ पौधा गल या मर जाता है व जिससे जमाव कम होता है और पौधों का फुटाव कम होने से पौधों की संख्या कम भी हो जाती है।
Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin 15th June 2023 sayısından alınmıştır.
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सब्जियों की जैविक खेती
सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।
किसानों के लिए पैसे बचाने का महत्व एवं बचत के आसान सुझाव
किसानों के लिए बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है। खेती एक जोखिम पूर्ण व्यवसाय है जिसमें मौसम, फसल की बीमारी और बाजार के उतार-चढ़ाव जैसी कई अनिश्चितताएं शामिल होती हैं।
उर्द व मूंग में एकीकृत रोग प्रबंधन
दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।
ढींगरी खुम्ब उत्पादन : एक लाभकारी व्यवसाय
खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।
वित्तीय साक्षरता को उत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से प्रयोग करना एवं भविष्य में वित्तीय सुरक्षा को यकीनन बनाने के लिए, प्रत्येक के लिए वित्तीय साक्षरता आवश्यक है। यह यकीनन बनाने के लिए कि आपका वित्त आपके विरुद्ध काम करने की बजाये आपके लिए काम करती है, ज्ञान एवं कुशलता की एक टूलकिट्ट की जरूरत होती है।
मेथी की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
मेथी (Fenugreek) की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
जैविक खादों का प्रयोग बढ़ायें
भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा।
गेंदे की वैज्ञानिक खेती से लाभ
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है।
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
खेती में बुलंदियों की ओर बढ़ने वाला युवक किसान - नितिन सिंह
उत्तर प्रदेश का एग्रीकल्चर सैक्टर काफी तेजी से ग्रो कर रहा है। इस सैक्टर को लेकर सबसे खास बात यह है कि देश के युवा भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी क्रम में हम आपको यूपी के सीतापुर के रहने वाले एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो लाखों युवा किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं।