समन्वित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन
Modern Kheti - Hindi|1st January 2025
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी अधिकतर जनसंख्या गांवों में निवास करती है। यहां पर अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन होता है। वास्तव में खाद्य पदार्थो का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या पर आधारित होता है।
शुभम सिंह एवं डॉ. राम प्रताप सिंह
समन्वित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन

भारतीय कृषि में फसलोत्पादन एक मुख्य व्यवसाय है, जो कृषि से होने वाली आय का महत्वपूर्ण भाग अदा करता है, साथ ही साथ अन्य गतिविधियों जैसे- पशुपालन, कुक्कुटपालन, मशरूम उत्पादन एवं कृषि वानिकी भी सहयोगी भूमिका निभाती है। इन सभी व्यवसायों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादन के अतिरिक्त निकले कृषि अवशेषों को ही आमतौर पर "कृषि अपशिष्ट " कहा जाता है जो प्रत्येक वर्ष खेती एवं पशुपालन से बहुतायत मात्रा में पैदा होता है जिसे अपार लाभदायक सम्भावनाओं से युक्त भोजन, चारे, ईंधन एवं खाद इतयादि उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करने की आज की खेती में अत्यन्त आवश्यकता है। कृषि अपशिष्ट प्रबंधन "समय की मांग" है अतः "समन्वित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन" से कृषि अपशिष्ट का सम्पूर्ण समाधान निकाला जा सकता है, जिससे पूरे वर्ष स्वरोजगार, गुणवत्तायुक्त उत्पाद, पर्यावरण संतुलन एवं आय प्राप्त किया जा सकता है।

एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाले कृषि अवशेषों की मात्रा 620 मिलियन टन से भी ज्यादा है। हमारे देश में मात्र 20-30 प्रतिशत भाग ही पशु चारे एवं ऊर्जा उत्पादन आदि में उपयोग होता है। शेष 70 प्रतिशत से ज्यादा भाग किसान खेत में ही जला देते हैं, जिसका मुख्य कारण कृषि अवशेषों का निम्न कोटि का, श्रम के अनुपात में कम लाभदायक तथा निस्तारण करने का आसान उपाय है, परिणामतः इसका कृषि एवं पर्यावरण पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है जो कि लगभग 50 प्रतिशत मुख्यतः धान, गेहूं एवं गन्ना से उत्पादित फसल अपशिष्ट को जलाने से निकलने वाली हानिकारक गैस CO2, CH4, N2O, H2S एवं धुंऐं के उत्सर्जन से सामान्य जन-जीवन को प्रभावित करने के साथ-साथ मृदा के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट कर मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है। अतः हम इसे ज्यादा समय तक अनदेखा नहीं कर सकते हैं। यह एक वैश्विक समस्या के रुप में हमारे सामने एक चुनौती है।

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शीत ऋतु में ऐसे करें डेयरी पशुओं का प्रबंधन
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शीत ऋतु में डेयरी पशुओं का उचित प्रबंधन करके हम उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रख सकते हैं। पौष्टिक आहार, उचित आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल के माध्यम से पशुओं को ठंड के तनाव से बचाया जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर हम पशुओं के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकते हैं।

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खाद्यय फसलों की रानी-मक्का उपज बढ़ाने के वैज्ञानिक तरीके
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मक्का विश्व की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है। मक्का में विद्यमान अधिक उपज क्षमता और विविध उपयोग के कारण इसे खाद्यय फसलों की रानी कहा जाता है। पहले मक्का को विशेष रुप से गरीबों का मुख्य भोजन माना जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।

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कृषि आय बढ़ाने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में डेयरी सैक्टर की भूमिका
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आठ करोड़ डेयरी किसानों के साथ भारत का डेयरी सैक्टर सामूहिक प्रयास और रणनीतिक विकास की ताकत का बेहतरीन सबूत है। 50 साल पहले दूध की कमी वाले देश से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनने तक भारत ने असाधारण यात्रा तय की है।

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सूरजमुखी की खेती की उत्तम पैदावार कैसे लें?
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सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनों ही मौसमों में की जा सकती है। परन्तु खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप होता है। फूल छोटे होते हैं तथा उनमें दाना भी कम है।

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पिछले सप्ताह जीडीपी के सात तिमाही के निचले स्तर पर पहुंचने के आंकड़ों ने पहले से ही परेशान भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार की मुश्किलें बढ़ी दी हैं।

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अपनी खेती अपने बीज
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पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना की ओर से सिफारिश अधिकतर बीज देसी किस्मों से संशोधित बीज हैं, विशेष तौर पर सब्जियों के। अनाज वाली फसलों के अधिकतर बीज हरित क्रांति की तकनीकों के द्वारा विकसित किये अधिक उत्पादन देने वाले हैं। पीएयू की ओर से अब तक गेहूं एवं धान की किसी भी हाईब्रिड किस्म की सिफारिश नहीं की गई है परन्तु मक्का की अधिकतर किस्में हाईब्रिड हैं।

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1st January 2025
सरसों में कीटों की पहचान व रोकथाम
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सरसों में कीटों की पहचान व रोकथाम

सरसों रबी में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी व पीली सरसों आती है। हरियाणा में सरसों मुख्य रुप से रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, हिसार, सिरसा, भिवानी व मेवात जिलों में बोई जाती है।

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1st January 2025
गन्ना कटाई मशीन आवश्यकता, लाभ व अनिवार्य शर्ते
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गन्ना कटाई मशीन आवश्यकता, लाभ व अनिवार्य शर्ते

यमुनानगर जिले की फसल विविधता में गन्ने का अहम् योगदान है। हरियाणा सांख्यिकी सारांश के अनुसार यमुनानगर जिले में वर्ष 2013-2014 में गन्ने का उत्पादन क्षेत्रफल 27000 हैक्टेयर से घटकर वर्ष 2021-2022 में लगभग 20000 हैक्टेयर रह गया है जिसमें इस प्रकार क्षेत्रफल में लगभग 25 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

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समन्वित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन
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1st January 2025
गेहूं का पीला रतुआ रोग एवं रोग से बचाव के उपाय
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गेहूं का पीला रतुआ रोग एवं रोग से बचाव के उपाय

गेहूं का पीला रतुआ रोग, गेहूं के उत्पादन में विश्व स्तर पर भारत का दूसरा स्थान है और वर्ष 2014 में हमारा गेहूं उत्पादन 95.91 मिलियन टन रहा जो एक ऐतिहासिक रिकार्ड उत्पादन है। भारत की गेहूं उत्पादन में यह उपलब्धि दुनिया के विकास के इतिहास में शायद सबसे महत्वपूर्ण तथा अद्वितीय रही है। गेहूं उत्पादन में काफी वृद्धि के बावजूद भी हमारा देश विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

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1st January 2025