उनकी प्यारी दोस्ती के चर्चे पूरे 'चंपक स्कूल' में थे.
एक दिन शाम के समय जब 'बड़े मैदान' में कौन के सब बच्चे खेल रहे थे तभी चीकू और ब्लैकी साइकिल पर सवार हो कर उस मैदान में आए और बच्चों वाले करतब दिखाने लगे.
बहुत से बच्चे उन के करतब देखने लगे और जोरजोर से ताली बजाने लगे. तभी चीकू हाथ छोड़ कर साइकिल चलाने लगा, उस का संतुलन बिगड़ गया और उस की साइकिल ब्लैकी की साइकिल से टकरा गई.
चीकू तुरंत संभल गया, लेकिन ब्लैकी मुंह के बल धड़ाम से जमीन पर गिरा. ब्लैकी को ऐसे गिरता देख, बच्चे जोरजोर से उस पर हंसने लगे और चीकू भी हंसने लगा.
ब्लैकी को यह सब बड़ा अपमानजनक लगा. साइकिल से गिरने से उस के कुछ खरोंच भी आ गई थीं. इस कारण उस के चिरमिराहट मची हुई थी. सब को ऐसे हंसते देख ब्लैकी भड़क उठा.
अपने प्यारे दोस्त चीकू को हंसते देख तो वह अपना धैर्य ही खो बैठा. वह तमतमाता हुआ उठा और धूल सने अपने कपड़ों को झाड़ता हुआ बोला, “चीकू, तुम भी मेरे गिरने पर मेरा मजाक उड़ा रहे हो. लो, हमारी दोस्ती खत्म."
फिर ब्लैकी ने अपनी ठुड्डी पर दाहिने हाथ के अंगूठे को 3 बार झटका देते हुए अपनी भाषा में कहा, “कट्टी, कट्टी, कट्टी.' उस का कहने का मतलब था कि अब उन की दोस्ती खत्म. इस के बाद तो ब्लैकी अपनी साइकिल उठा कर वहां से झुंझलाता और बड़बड़ाता हुआ चला गया.
उस ने चीकू को माफी मांगने और सौरी बोलने का मौका भी नहीं दिया. अगले दिन कक्षा में ब्लैकी चीकू के पास भी नहीं बैठा. उस ने अब अपने नए दोस्तों का ग्रुप बना लिया था.
Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin August First 2024 sayısından alınmıştır.
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जो ढूंढ़े वही पाए
अपनी ठंडी, फूस वाली झोंपड़ी से राजी बाहर आई. उस के छोटे, नन्हे पैरों को खुरदरी, धूप से तपती जमीन झुलसा रही थी. उस ने सूरज की ओर देखा, वह अभी आसमान में बहुत ऊपर नहीं था. उस की स्थिति को देखते हुए राजी अनुमान लगाया कि लगभग 10 बज रहे होंगे.
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भारत की आजादी के कुछ साल बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जिन्हें प्यार से 'चाचा नेहरू' के नाम से भी जाना जाता है, वे एक कार्यक्रम में छोटे से गांव में आए. नेहरूजी के आने की खबर गांव में फैल गई और हर कोई उन के स्वागत के लिए उत्सुक था. खास कर बच्चे काफी उत्साहित थे कि उन के प्यारे चाचा नेहरू उन से मिलने आ रहे हैं.
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“इस बार आप बार आप ने क्या बनाया हैं, मम्मी?\"
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बहुत से विद्वानों ने अलगअलग समय पर विभिन्न भाषाओं में डिक्शनरी बनाने का प्रयत्न किया, जिस से सभी को शब्दों के अर्थ खोजने में सुविधा हो. 1604 में रौबर्ट कौड्रे ने कड़ी मेहनत कर के अंग्रेजी भाषा के 3 हजार शब्दों का उन के अर्थ सहित संग्रह किया.
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\"पटाखों के बिना दीवाली नहीं होती है,” ऋषभ ने नाराज हो कर कहा.