विकिपीडिया और लोकसभा में दर्ज जानकारी के अनुसार, धनंजय सिंह का जन्म जौनपुर के एक गांव में 16 जुलाई, 1975 को एक क्षत्रिय (राजपूत) परिवार में हुआ था. जौनपुर और उस के गांव बंसपा के लोगों की मानें तो दबंगई धनंजय में बचपन से कूटकूट कर भरी थी, जिसे शुरुआती दिनों में लोग उस की निडरता और जातीय असर के नजरिए से देखते थे.
स्कूली जीवन में अन्य छात्रों की तुलना में धनंजय के तेवर अलग थे. बातबात में झगड़ पड़ने की आदत से स्कूल के शिक्षक तक परेशान रहते थे. उन दिनों वह लखनऊ के महर्षि विद्या मंदिर में पढ़ता था.
बताते हैं कि उन्हीं दिनों उस पर एक शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या का आरोप तब लग गया था, जब वह 1990 में हाईस्कूल में पढ़ रहा था. हालांकि इस की जांच में आरोप साबित नहीं हो पाया था.
उस के बाद उस ने जौनपुर के तिलकधारी सिंह इंटर कालेज में पढ़ाई की. उस दौरान भी एक युवक की हत्या का आरोप उस पर लग गया. उस मामले में तब पुलिस ने पकड़ लिया था. जिस का अंजाम यह हुआ कि इंटरमीडिएट की 3 परीक्षाएं पुलिस हिरासत में देनी पड़ीं.
इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद धनंजय लखनऊ आ गया. कालेज में उस की दोस्ती अभय सिंह से हुई और पढ़ाई के साथ राजनीति शुरू हो गई. धनंजय के साथ सजातीय 3 और लोग एकजुट हो गए. वे अभय सिंह, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह थे.
जाति के नाम पर उन की एकजुटता होने से यूनिवर्सिटी में वर्चस्व बढ़ गया और वे एक दबंग गुट के रूप में लोकप्रिय हो गए.
उन दिनों हबीबुल्ला हौस्टल इन तीनों की दबंगई से चर्चा में आ गया था. जब भी कहीं कोई छोटेबड़े अपराध की वारदात होती, तब हबीबुल्ला हौस्टल का नाम पहले आता था और खोज धनंजय सिंह की होती थी.
चाकू मारने से ले कर किडनैपिंग और गोली चलाने की घटनाओं में पुलिस की नजर हौस्टल में रह रहे धनंजय सिंह पर टिक जाती थी.
धनंजय सिंह ने करिअर बनाने के लिए ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया. रेलवे के ठेके के लिए बाकायदा एक गुट बना लिया. इस गुट का रेलवे के ठेकों में दखल बढ़ा.
...और शुरू हो गया गुंडा टैक्स
Bu hikaye Manohar Kahaniyan dergisinin June 2023 sayısından alınmıştır.
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