मी नू ने अपने मायके आनाजाना शुरू किया तो पूरे गांव में उस के प्रेम प्रपंच और भागने की चर्चाएं शुरू हो गईं. पुराने घाव हरे हुए तो भाई धर्मेंद्र यादव तिलमिला उठा. गांव में अब फिर से उस की बदनामी होने लगी थी. एक रोज तो हद ही हो गई जब उस के दोस्त ने उसे धिक्कारा, " धर्मेंद्र, तू कैसा मर्द है. तूने तो यदुवंशियों की नाक ही कटवा दी. यदि मेरी बहन भाग कर वापस आती तो मैं उसे व भगाने वाले को ऐसा सबक सिखाता कि वह ताउम्र नहीं भूलते. "
दोस्त की बात धर्मेंद्र के दिल में उत्तर गई.
वह मीनू और उस के प्रेमी सूरज को सबक सिखाने की कसम तो पहले ही खा चुका था. लेकिन बेइज्जती का बदला लेने के लिए अब धर्मेंद्र ने सूरज के पूरे परिवार को ही खत्म करने का निश्चय किया. इस के लिए वह सुपारी किलर की तलाश में जुट गया.
कुछ समय बाद धर्मेंद्र को अपराधी चतुर सिंह व वीर सिंह के बारे में पता चला. दोनों कुछ दिनों पहले ही जेल से छूट कर आए थे. चतुर सिंह कानपुर देहात के सिकंदरा कस्बे का रहने वाला था, जबकि वीर सिंह कानपुर देहात के किशनपुर गांव में रहता था. वीर सिंह चतुर सिंह का साढू था. दोनों हार्ड क्रिमिनल थे.
धर्मेंद्र सिंह ने एक शाम चतुर सिंह व वीर सिंह से मुलाकात की. धर्मेंद्र ने उन्हें पूरी बात बताई और बहन मीनू के परिवार को मिटाने की बात कही. काफी देर तक चतुर सिंह सोचता रहा, फिर हत्या की सुपारी लेने को राजी हो गया. इस के बाद धर्मेंद्र ने बहन के परिवार को मिटाने के लिए 10 लाख रुपए की सुपारी चतुर सिंह को दे दी. 3 लाख रुपए बतौर एडवांस उस ने चतुर सिंह को दे भी दिए और बाकी रकम काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया.
इस के बाद चतुर सिंह ने हत्या की योजना में साढ़ वीर सिंह के अलावा अपने फूफा जगमोहन उर्फ कल्लू तथा कार ड्राइवर संजीव को भी शामिल कर लिया.
जगमोहन उर्फ कल्लू कानपुर देहात के गांव महकापुर का रहने वाला था, जबकि संजीव कानपुर देहात के मंगलपुर कस्बे का रहने वाला था. वह अपनी निजी कार का प्रयोग शादीबारात व धार्मिक स्थानों पर जाने के लिए करता था.
Bu hikaye Manohar Kahaniyan dergisinin December 2024 sayısından alınmıştır.
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