दिल्ली शराब घोटाला पलटते गवाहों के दम पर गिरफ्तारियां क्यों
Manohar Kahaniyan|May 2024
पिछले सवा साल से भाजपा दिल्ली शराब घोटाले का राग अलाप रही है. सीबीआई और ईडी भी इस मामले की जांच में जुटी हुई हैं, लेकिन वह अभी तक यह पता नहीं लगा पाई हैं कि घोटाला कितने रुपए का हुआ और घोटाले का पैसा किस खाते से आया, किस खाते में गया. गिरगिट की तरह रंग बदलते गवाहों के बयानों पर आखिर क्यों हो रही हैं धड़ाधड़ गिरफ्तारियां?
नवीन पोखरियाल
दिल्ली शराब घोटाला पलटते गवाहों के दम पर गिरफ्तारियां क्यों

पूरी दुनिया में तहलका मचाने वाले वायरस कोविड 19 का दौर खत्म हो चुका था. बीते 2 साल की फीकी होली के बाद साल 2022 में धूमधाम 'से होली के लिए दिल्ली में भी जबरदस्त माहौल बन गया था. हफ्ते भर पहले से ही रंगअबीर, गुब्बारे, पिचकारियां और तरहतरह के कपड़ों की दुकानें सज गई थीं. गुझिया, लड्डू आदि की विशेष थाली के साथ मिठाइयों की दुकानें भी सजाई जा चुकी थी.

इसी के साथ 100-150 मीटर की दूरी पर नई तरह की दुकानों के साइनबोर्ड चमक उठे थे. वे दुकानें शराब की थीं. उन का नामकरण ठेठ अंदाज में 'ठेका' रखा गया था. नीचे लिखा था बीयर वाइन की दुकान बाहर से ग्रिल या लोहे की जाली नहीं लगी थी, बल्कि उसे खानेपीने के सामानों के शोरूम की तरह सजाया गया था. उस के परिसर में कोई भी बेधड़क जा कर अपनी पसंद के देसीविदेशी ब्रांड को चुन सकता था. हाथों में उठा कर जांचपरख कर सकता था.

उन में शराब खरीद पर मिलने वाले औफर के बैनरपोस्टर भी लगे हुए थे. उन पर मोटे अक्षरों में लिखा था 'एक की खरीद पर एक मुफ्त.' फिर क्या था, लोग शराब की दुकानों की ओर दौड़ पड़े थे. मर्द तो मर्द, महिलाएं भी दुकानों पर पहुंचने लगी थीं. ऐसा केजरीवाल सरकार द्वारा बदली हुई आबकारी नीति के तहत हुआ था.

दरअसल, शराब बिक्री में आ रही गड़बड़ को रोकने और राजस्व बढ़ाने के लिए जून जुलाई 2021 में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार नई योजना पर काम रही थी. इसे ले कर आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कई बैठकें कीं. पाया कि शराब की सरकारी दुकानों से ही राजस्व को आसानी से बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब शराब की दुकानों की संख्या बढ़ाई जाए. उस के बाद ही आबकारी नीति में फेरबदल किया गया.

उसके बाद ही नवंबर 2021 में आप सरकार ने अपनी नई उत्पाद शुल्क नीति में व्यापक बदलाव किया. नीति के तहत शराब की खुदरा बिक्री को पूरी तरह से निजी ठेके को देने का निर्णय लिया गया. हालांकि यह पहले सरकारी और निजी ठेके के बीच समान तरीके से होता था और इस से उत्पाद शुल्क विभाग को सालाना लगभग 4,500 करोड़ रुपए मिल जाते थे.

Bu hikaye Manohar Kahaniyan dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.

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