बात तब की है, जब देश में हुकूमत तो अंगरेजों की थी, लेकिन राज राजा करते थे. इंदौर में उन दिनों राजा तुकोजीराव होल्कर (तृतीय) राज कर रहे थे. अन्य राजाओं की तरह तुकोजीराव भी अय्याशी में डूबे रहते थे. इस की वजह यह थी कि इन राजाओं के पास कोई कामधाम तो होता नहीं था. जनता से लगान की जो रकम आती थी, उस में से अंगरेजों का हिस्सा निकाल कर बाकी रकम वे अपने मौजशौक और अय्याशी पर खर्च करते थे. इसी दौरान उन के संपर्क में एक लड़की आई.
उस लड़की की उम्र उस समय मात्र 10 साल थी. नाम था उस का मुमताज, वह अपनी मां, दादी और साजिंदों के साथ पंजाब के अमृतसर से इंदौर के महाराजा तुकोजीराव के यहां आई थी. खास बात यह थी कि मुमताज बहुत अच्छी नृत्यांगना थी. महाराजा ने उस के रहने की व्यवस्था लालबाग स्थित महल में करा दी थी. वह 2 महीने तक इंदौर में रही. इन 2 महीनों तक रोजाना महाराजा की महफिल लालबाग में जमती रही.
लालबाग के महल में जमने वाली महफिलों में मुमताज ने महाराजा को अपनी सुमधुर आवाज और नृत्य का कायल कर दिया था. मुमताज के सुर और सौंदर्य का महाराज पर ऐसा जादू चला था कि वह उस के दीवाने गए थे.
2 महीने तक अपने सुर और सौंदर्य का जादू बिखेर कर मुमताज हैदराबाद के नवाब के यहां चली गई. पर वह वहां ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई, क्योंकि हैदराबाद के नवाब तो वैसे भी कंजूस थे. जब वह खुद पर ही अपने पैसे नहीं खर्च करते थे तो भला नाचने गाने वाली पर कहां से खर्च करते. मुमताज जल्दी ही हैदराबाद से फिर इंदौर आ गई. इंदौर के लालबाग स्थित महल में फिर से मुमताज की महफिलें जमने लगीं.
इंदौर में एक साल तक मुमताज के संगीत और गायन की महफिल जमती रही. महाराजा तुकोजीराव मुमताज के सम्मोहन में बंधते गए. वह उस पर दिल खोल कर रुपए लुटा रहे थे. हीरे जवाहरात और गहनों से उन्होंने उसे लाद दिया था.
एक साल इंदौर में रह कर मुमताज अमृतसर चली गई. पर वह वहां भी ज्यादा दिनों तक ठहर नहीं सकी. जो सम्मान और प्यार उसे इंदौर में मिल रहा था, वह अमृतसर में नहीं मिला तो मुमताज जल्दी ही एक बार फिर इंदौर आ गई.
Bu hikaye Manohar Kahaniyan dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.
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