इसी दौर में हिंदुस्तानी सिनेमा ने पहली बार बोलना भी सीखा था. यह दिन था शनिवार और तारीख थी 14 मार्च, 1931. इस पहली बोलती फिल्म का नाम था 'आलम आरा', जो मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमाघर में रिलीज हुई थी.
साल 1947 में जब देश को आजादी मिली, तो इसी के साथ देश की सभी चीजों को आजादी मिलती गई. इस के बाद देश में हिंदी भाषा में एक के बाद एक कई फिल्में बनीं और कामयाब भी हुईं.
उस समय भोजपुरी बोलने वाले दर्शकों की तादाद ज्यादा थी, इसलिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की फिल्मों के संवादों में कुछ हिंदीभोजपुरी के शब्द मिले होते थे. लेकिन पूरी तरह से भोजपुरी सिनेमा बनाने का आगाज तब भी नहीं हो रहा था.
भोजपुरी फिल्मों का आगाज
आजादी के बाद भोजपुरी बैल्ट के दर्शकों में भोजपुरी बोली में फिल्म की डिमांड बढ़ती जा रही थी. यह बात किसी तरह उस समय के राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद के कानों तक पहुंच गई. वे बिहार के एक गांव से ताल्लुक रखते थे, इसलिए उन की भोजपुरी में खासा दिलचस्पी थी. ऐसे में उन्होंने पहले 60 साल भोजपुरी में सिनेमा निर्माण की पहल भी खुद शुरू की, जिस का नतीजा यह रहा कि देश की पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' बनी.
भोजपुरी में बनी यह पहली सुपरडुपर हिट रही फिल्म इतनी थी कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग बैलगाड़ियों पर लद कर सिनेमाघरों तक पहुंचे थे. इस फिल्म का निर्माण राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद की प्रेरणा से आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे नजीर हुसैन ने किया था. आरा के रहने वाले कारोबारी विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी ने इस फिल्म में अपना पैसा लगाने की घोषणा की थी.
फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' के डायरैक्शन का काम कुंदन कुमार ने किया था, तो इस में गाने को आवाज देने का काम लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे मशहूर गायकों ने किया था. फिल्म के गाने मशहूर गीतकार शैलेंद्र और भिखारी ठाकुर ने लिखे थे. इस फिल्म में संगीत देने का काम संगीतकार आनंदमिलिंद के पिता चित्रगुप्त ने किया था.
हिंदी फिल्मों की मशहूर हीरोइन कुमकुम ने इस फिल्म में लीड रोल किया था, जो भोजपुरी फिल्मों की पहली हीरोइन रहीं. असीम कुमार हीरो रहे थे. फिल्म में विलेन की भूमिका बिहार के रहने वाले रामायण तिवारी ने निभाई थी.
Bu hikaye Saras Salil - Hindi dergisinin August First 2022 sayısından alınmıştır.
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भोजपुरी सिनेमा की टूटती जोड़ियां
भोजपुरी सिनेमा में यह बात जगजाहिर है कि हीरोइनों का कैरियर केवल भोजपुरी ऐक्टरों के बलबूते ही चलता रहा है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में भोजपुरी के टौप ऐक्टरों के हिसाब से ही फिल्मों में हीरोइनों को कास्ट किया जाता है.
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\"दिल्ली के नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ऐक्टिंग की ट्रेनिंग ले कर आया तो था ऐक्टर बनने, पर बन गया फिल्म स्टोरी राइटर. इस फील्ड में भी मुझे दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का प्यार मिला, क्योंकि मेरा शौक एक आर्टिस्ट बनना ही था, जिस में राइटिंग, डायरैक्शन, ऐक्टिंग सब शामिल रहा है. मेरे आदर्श गुरुदत्त हैं, क्योंकि उन्होंने लेखन से ले कर अभिनय तक सब किया और दोनों में कामयाब रहे,\" यह कहना है गुंजन जोशी का.
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