इस के बावजूद भले ही भोजपुरी हीरोइनें भोजपुरी सिनेमा में टौप पर बैठी हों, लेकिन उन का मेहनताना इतना कम होता है कि वे खुल कर कभी मीडिया के सामने बता भी नहीं पाती हैं.
वैसे, नए और छोटे ऐक्टरों के मामले में ऐसा नहीं है, फिर भी ज्यादातर मामलों में हीरो की दखलअंदाजी कास्टिंग के मामले में ज्यादा होती है.
भोजपुरी फिल्मों में अपनी खास पहचान बना चुकी कई हीरोइनों ने अपने कैरियर के शुरुआती दौर में चर्चित ऐक्टरों के साथ काम किया, जिस का नतीजा यह रहा कि उन्हें एक के बाद एक कई फिल्में मिलती गईं और वे टौप पर आती गईं. उन का चेहरा भी दर्शकों के दिलोदिमाग पर घर करता गया.
लेकिन जब इन हीरोइनों की जोड़ियां टूटीं तो हीरो के इशारों पर चलने वाली भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के निर्माताओं ने भी इन से किनारा करना शुरू कर दिया, क्योंकि जिन ऐक्टरों की जोड़ियां टूट चुकी हैं, उन की फिल्म इंडस्ट्री में तूती बोलती है और इस के चलते दूसरे हीरो की फिल्मों के खरीदार तक नहीं मिलते हैं.
यही वजह है कि कई अच्छे ऐक्टरों को ले कर भी निर्माता फिल्म बनाने से डरते हैं. भोजपुरी सिनेमा में स्टारडम इतना हावी है कि अच्छी कहानियों, अच्छे कलाकारों और तकनीकी से भरपूर फिल्में भी खरीदारों के इंतजार में ठंडे बस्ते में पड़ी रहती हैं.
कई स्टारडम वाली हीरोइनें, जिन का कैरियर कभी आसमान पर था, उन में सब से पहली जोड़ी मनोज तिवारी और रानी चटर्जी की मानी जाती थी. दोनों ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं.
भोजपुरी सिनेमा में साल 2000 के बाद बनी फिल्मों में मनोज तिवारी और रानी चटर्जी के नाम आज भी सब से ज्यादा कमाई करने का रिकॉर्ड है.
मनोज तिवारी और रानी चटर्जी की इस जोड़ी को दर्शकों ने भी खूब प्यार दिया. यही वजह है कि मनोज तिवारी और मेकर्स की पहली पसंद रानी चटर्जी हुआ करती थीं.
Bu hikaye Saras Salil - Hindi dergisinin February Second 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Saras Salil - Hindi dergisinin February Second 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
भोजपुरी सिनेमा की टूटती जोड़ियां
भोजपुरी सिनेमा में यह बात जगजाहिर है कि हीरोइनों का कैरियर केवल भोजपुरी ऐक्टरों के बलबूते ही चलता रहा है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में भोजपुरी के टौप ऐक्टरों के हिसाब से ही फिल्मों में हीरोइनों को कास्ट किया जाता है.
गुंजन जोशी तो 'फाड़' निकले
\"दिल्ली के नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ऐक्टिंग की ट्रेनिंग ले कर आया तो था ऐक्टर बनने, पर बन गया फिल्म स्टोरी राइटर. इस फील्ड में भी मुझे दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का प्यार मिला, क्योंकि मेरा शौक एक आर्टिस्ट बनना ही था, जिस में राइटिंग, डायरैक्शन, ऐक्टिंग सब शामिल रहा है. मेरे आदर्श गुरुदत्त हैं, क्योंकि उन्होंने लेखन से ले कर अभिनय तक सब किया और दोनों में कामयाब रहे,\" यह कहना है गुंजन जोशी का.
सैक्स रोगों की अनदेखी न करें
सैक्स से जुड़े रोग आदमी और औरत दोनों में सैक्स के प्रति अरुचि बढ़ाते हैं. इस के साथ ही ये शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की परेशानियों को भी बढ़ाते हैं.
एक थप्पड़ की कीमत
वैसे तो रवि अपने एकलौते बेटे सोहम को प्यार करता था, पर जबतब उसे थप्पड़ भी मार देता था. एक दिन उस ने फिर वही सब दोहराया, लेकिन यह थप्पड़ उस पर ही भारी पड़ गया. लेकिन कैसे?
वर्मा साहब गए पानी में
वर्मा साहब की रिटायरमैंट गाजेबाजे के साथ हुई. घर पर दावत भी दी गई, पर उस के बाद उन की पत्नी ने ऐसा बम फोड़ा कि वर्मा साहब के कानों तले की जमीन खिसक गई...
नाजायज संबंध औनलाइन ज्यादा महफूज
सदियों से मर्दऔरतों में नाजायज संबंध बनते आए हैं. अब तो इस तरह के एप आ गए हैं, जहां औनलाइन डेटिंग की जा सकती है. इसे एक सुरक्षित तरीका बताया जाता है. क्या वाकई में ऐसा है?
कत्ल करने से पीछे नहीं हट रही पत्नियां
एक पारिवारिक झगड़े के मसले पर फैसला देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की है कि \"बीते डेढ़ दशक में प्रेम प्रसंगों के चलते होने वाली हत्याओं की दर बढ़ी है, जिस से समाज पर बुरा असर पड़ा है. इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है.'
आसाराम का ढहता साम्राज्य
आसाराम के संदर्भ में आज का समय हमेशा याद रखने लायक हो गया है, क्योंकि धर्म के नाम पर अगर कोई यह समझेगा कि वह देश की जनता और कानून को ठेंगा बताता रहेगा, तो उस की हालत भी आसाराम बापू जैसी होनी तय है.
अडाणीजी यह राष्ट्रवाद क्या है ?
जिस तरह भारत के बड़े रुपएपैसे वाले, चाहे अडाणी हों या अंबानी की जायदाद बढ़ती चली जा रही है और दुनिया के सब से बड़े पूंजीपतियों की गिनती में इन को शुमार किया जाने लगा है, उस से यह संकेत मिलने लगा था कि कहीं न कहीं तो दो और दो पांच है.
सोशल मीडिया: 'पठान' के बहाने नफरती ट्रैंड का चलन
सुनामी चाहे कोई समुद्र उगले या कोई फिल्म, ज्वार का जोश ठंडा होने पर ही पता चलता है कि तबाही किस हद तक की थी. कुछ ऐसा ही महसूस हुआ फिल्म 'पठान' को ले कर.