संजय हर रोज की तरह दोपहर में समय से घर आ गया था. अपना आटो किराए के मकान के बाहर दीवार से सटा कर लगा दिया था. चहकते हुए उस का छोटा 4 साल का बेटा उस के पास आ कर चहकता हुआ बोला, "पापा...पापा, जल्दी चलो न. तुम्हारे लिए मिठाई है."
"मिठाई ! मम्मी लाई ?" कहते हुए संजय ने बेटे को गोद में उठा लिया.
"नहीं, अंकल ले कर आए थे. चले गए..." संजय के गले में दोनों हाथ डालता हुआ बेटा बोला.
“अच्छाऽऽ कौन से अंकल आए थे?" संजय बोलता हुआ कमरे तक आ गया था. उस की पत्नी नारायणी दरवाजे पर ही मिल गई.
पति की गोद में चढ़े बेटे को देख कर बोली," बता दिया पापा को सब कुछ?"
"कौन आया था ? जूनागढ़ से कोई आया था क्या ?" संजय पूछा.
"अरे वही तहसीलदार. कोरोना में जो घर नहीं चला गया था ?... अब फिर से यहीं रहेगा. कामधंधा ढूंढेगा." नारायणी बोली.
"अच्छा तहसीलदार बघेल, जो तुम्हारे मायके के मोहल्ले का है ?" संजय बोला.
"हांहां, वही. रंगरोगन का जो काम करता है. सड़क पार मिठाई वाले की दुकान के पीछे किराए पर रहता था, नारायणी बोली.
"चलो अच्छा है, यहां रहेगा तब कुछ काम मिल ही जाएगा. वैसे भी बाजार मंदा चल रहा है!" बोलता हुआ संजय कमरे में चला गया. बेटे को गोद से उतारा.
"खाना लगा देती हूं. हाथमुंह धो लो. पानी भी आज नहीं आया है. जरा कम खर्च करना, अभी कुछ कपड़े धोने हैं." नारायणी बोली. यह बात साल 2021 के मई महीने की है.
मध्य प्रदेश में भिंड जिले के दबोह थाने के अंतर्गत मिहोनी गांव का रहने वाला 31 वर्षीय संजय बघेल पेशे से आटो चालक था. वह वीरेंद्र नगर में किराए पर कमरा ले कर अपने परिवार के साथ रहता था.
परिवार में उस की पत्नी नारायणी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. उस की शादी करीब 8 साल पहले हुई थी. इन 8 सालों में नारायणी देवी और संजय 3 बच्चों के मातापिता बन चुके थे. इस छोटे से परिवार में पतिपत्नी दोनों खुश थे. दोनों बेटियां बड़ी थीं. स्कूल जाने लगी थीं, जबकि बेटा अभी छोटा था. घर पर ही मातापिता से पढ़ाई कर अक्षर ज्ञान वगैरह सीख रहा था.
Bu hikaye Satyakatha dergisinin December 2022 sayısından alınmıştır.
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