उस रोज ओमप्रकाश एक योजना को अंजाम देने के मकसद से आया था. वह पत्नी सीमा और तीनों बच्चों को खुश करने के लिए मिठाई का डिब्बा ले कर आया था. रात का खाना उसे मां ने परोसा था. सीमा ओमप्रकाश से सीधे मुंह बात ही नहीं कर रही थी. बड़ी मुश्किल से वह सीमा के कमरे में गया. वहीं खुशी भी मौजूद थी. उस ने जाते ही पहले खुशी से माफी मांगी. उस ने जैसे ही मुकदमे की तारीख की बात की, सीमा भड़क उठी. खुशी भी उस की हां में हां मिलने लगी.
ओमप्रकाश ने हाथ जोड़ लिया और उस से मुकदमा वापस लेने की मिन्नतें करने लगा. इस पर सीमा और खुशी दोनों ने उस की बात का विरोध किया. दोनों गुस्से में चीखने चिल्लाने लगीं. उन के बीच तूतू मैं मैं बढ़ गई.
बात बिगड़ती देख कर ओमप्रकाश ने सीमा को पीटना शुरू कर दिया. संयोग से वहीं तवा रखा था. ओमप्रकाश उसी तवे से सीमा को पीटने लगा. मम्मी को पिटता देख खुशी बचाने के लिए मां से लिपट गई. बाहर खड़ी स्नेहलता तमाशा देखती रहीं. उन के झगड़े को छुड़ाने के बजाए उन्होंने कमरे के बाहर की कुंडी लगा दी.
भीतर कमरे में तवे के जोरदार हमले से सीमा और खुशी के सिर फट गए. दोनों जमीन पर गिर गईं. ओमप्रकाश ने उन पर कई हमले कर दिए. दोनों के फर्श पर ढेर होते ही ओमप्रकाश और स्नेहलता वहां से भाग निकले.
बाहरी दिल्ली के टिकरी खुर्द गांव में 23 अगस्त, 2024 की शाम को सीमा अपने घर के छोटे से किराने की दुकान में हिसाबकिताब मिला रही थी. दुकान में ही उस की बेटी खुशी सामानों का स्टौक जांच कर मां की मदद कर रही थी.
2 दिन बाद 26 अगस्त को जन्माष्टमी का त्यौहार आने वाला था. उस के हिसाब से सीमा पूजा और सजावट का सामान मंगवाने की सूची भी बनाने लगी थी. तभी खुशी की नजर दूर से आ रहे पिता पर पड़ गई. उस के मुंह से निकल पड़ा, “लो आ रहा है आग लगाने."
Bu hikaye Satyakatha dergisinin December 2024 sayısından alınmıştır.
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