"भौजी... ओ भौजी," दरवाजे को थपकी देते हुए राजेश ने जोर से आवाज लगाई. थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला. दरवाजा खोलने वाली युवती काजल थी. गोरे रंग की तीखे नाकनक्श वाली काजल के चेहरे पर उस वक्त उदासी छाई हुई थी. दरवाजा खोल कर उस ने राजेश पर उचटती सी नजर डाली और धीरे से पूछा, "क्या चाहिए ?"
"उत्तम भैया नहीं हैं क्या घर में?" हिचकते हुए राजेश ने पूछा.
“अभी घर नहीं लौटे हैं, आएंगे तो फोन करवा दूंगी, आ जाना." कहते हुए काजल ने दरवाजा बंद करना चाहा तो राजेश ने दरवाजा पकड़ लिया, "माफ करना भौजी, तुम्हारे चेहरे की उदासी देख कर मेरा मन बैठ गया है. बताओ, हमेशा हंसतामुसकराता रहने वाला चेहरा आज यह उदास क्यों है?"
"क्या करोगे जान कर..." काजल ने बात घुमा दी, "अपने भैया के लिए आए थे, वह नहीं हैं तो फिर आ जाना."
“मैं अपनी भौजी को भी तो अपना मानता हूं." राजेश जल्दी से बोला, "तुम्हारा उदासी भरा चेहरा क्या मुझे वापस जाने देगा?"
काजल ने गहरी सांस ली और दरवाजा छोड़ते हुए बोली, “अंदर आ जाओ."
राजेश कमरे में आ गया. काजल ने उसे कुरसी दी तो वह उस पर बैठते हुए बेचैन स्वर में बोला, "मैं भैया से ज्यादा तुम्हें अपना मानता हूं भौजी. तुम्हारी उदासी देख कर मन विचलित हो गया है. बताओ, क्या भैया से कोई कहासुनी हो गई है?"
"नहीं, वह घर में नहीं हैं तो उन से कहासुनी क्यों होगी. बस, मन यूं ही उदास हो गया." काजल ने कह कर फिर गहरी सांस भरी.
"नहीं, मैं नहीं मानता. यूं ही तुम उदास नहीं हो सकती. तुम्हें शुभम की..."
काजल ने झपट कर राजेश के मुंह पर " हथेली रख कर उस का वाक्य पूरा नहीं होने दिया. तुरंत बोली, "शुभम की कसम मत दो, मैं तुम्हें ऐसे ही बता देती हूँ."
"बताओ, " राजेश ने उस का हाथ अपने मुंह से हटा कर उस की आंखों में झांका.
"मेरी उदासी का सबब तुम्हारे भैया ही हैं. आज मैं अकेली बैठी तुम्हारे भैया के •साथ अपनी शादी को ले कर विचार कर रही थी. " काजल का स्वर गंभीर हो गया, " पता नहीं क्या देख कर मेरे घर वालों ने मेरी शादी उत्तम के साथ कर दी. यह तो देख लेते कि उत्तम अपाहिज है, उस की जोड़ी मेरे साथ जमेगी भी या नहीं. कुछ नहीं सोचा और मुझे लपेट दिया शादी के बंधन में."
Bu hikaye Satyakatha dergisinin January 2023 sayısından alınmıştır.
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