राकेश मीणा अपने औफिस में तो आ गया था, लेकिन उस का मन काम में नहीं लग रहा था. सुबह से ही उस के सिर में दर्द था और बदन भी गरम लग रहा था. वह औफिस आना नहीं चाहता था, लेकिन एक जरूरी फाइल मालिक को कंप्लीट कर के देनी थी, इसलिए औफिस आना जरूरी हो गया था.
जैसेतैसे राकेश ने फाइल का काम पूरा किया. दोपहर में लंच का टाइम हो गया था, लेकिन उस की इच्छा लंच करने की नहीं हुई. उस ने फाइल मालिक की मेज पर रख कर उन से अपनी तबीयत खराब होने की बात बता आधे दिन की छुट्टी ले ली.
स्कूटर से घर की ओर लौटते वक्त उस ने रास्ते में पड़ने वाले एक कैमिस्ट से सिर दर्द की दवा खरीदी और घर पहुंच गया.
पत्नी पूजा भरा हुआ टिफिन देख कर नाराज होगी, यह बात राकेश अच्छी तरह जानता था. पूजा ने आज बड़े प्यार से लंच के लिए बैंगन का भरता और परांठे बना कर दिए थे, तबीयत खराब हो जाने की वजह से वह टिफिन वापस ले आया था.
"ऊंह! पूजा नाराज होगी तो वह उसे मना लेगा." सोचते हुए राकेश ने स्कूटर स्टैंड पर खड़ा किया और दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा दिए.
दरवाजा अंदर से बंद था. राकेश ने कालबेल बजाई तो काफी देर बाद उस की 24 वर्षीय पत्नी पूजा ने दरवाजा खोला.
सामने पति को खड़ा देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह आश्चर्य से बोली, "आप, इस समय?"
राकेश ने गौर से पत्नी पूजा की तरफ देखा, पूजा के बाल बिखरे हुए थे. माथे का सिंदूर फैला हुआ था. कपड़े भी अस्तव्यस्त थे. माथे पर छलका पसीना और उखड़ी हुई सांसें बयां कर रही थीं कि बंद दरवाजे के पीछे वह किसी अनैतिक कार्य में लिप्त रही है.
राकेश का माथा ठनका. उस ने अपने कदम आगे बढाए ही थे कि पूजा ने खुद को संभालते हुए उस के गले में प्यार से बाहें डाल दीं और उस से सट कर कामुक स्वर में बोली, "बहुत मौके से आए हैं आप, मैं अभी नींद में आप का ही सपना देख रही थी."
"अंदर कौन है पूजा?'' राकेश ने पत्नी की बाहें गले में से निकालने का प्रयास करते हुए तीखे स्वर में पूछा.
"अंदर कौन होगा जी!" पूजा ने चौंकने का नाटक करते हुए हैरानी से कहा, "आइए देख लीजिए, अंदर तो मैं ही थी."
Bu hikaye Satyakatha dergisinin April 2023 sayısından alınmıştır.
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